________________
७५) अति प्यास लगी हो तब खाना चाहिए नही और जब अति भूख
लगी हो तब कुछ पीना चाहिए नहीं। ७६) अगीतार्थ साधु के लिए २ प्रहर (६ घंटे) और गीतार्थो के लिए
१ प्रहर (३ घंटे) की निद्रा बताने में आई है। ७७) पाप श्रुत का आचरण करने वाले (प्रयोग) करनेवाला जीव
मरकर अधम कोटी के आसुरिक-किल्बीषीक स्थान में उत्पन्न होते है वहाँ से च्यवीत होकर (मरकर) जनम से ही गुंगे-अंधे जीव बनते है।
७९)
७८) छकाय की घोर हिंसा करनेवाले जीव को मातृ-पितृ वध,
अप्रिय का संयोग, प्रिय का वियोग, धन नाश, शारीरिक वेदना आदि अनेक वेदनाएं सहन करनी पडती है । इर्यासमिती के उपयोग से चल रहा साधु जीवो को मारने की बुध्दि न होने पर भी शायद कोई जीव पैर नीचे आ जाए तो दोष नहीं और तंदुलीया मत्स्य कुछ भी न करते हुए भी मन से विचार
करके पाप बांधकर ७ वी नरक में जाए। ८०) साधु को “परिमीत पानी पीनेवाले" कहा गया है।
८१) साधु कोई भी चीज को एकांत वचन से न बोले, क्योंकी
जिनेश्वरो को द्वारा कहा गया धर्म अनेकांतवाद मय है।