Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 44
________________ २१६) सब से पहेले (१) गुरु के पास आकर आज्ञा लेवे । (२) गुरु आज्ञा देवे तो त्रिविध आहार के जावजीव त्याग के पच्चखाण लेवे । ( अनशन की आराधना से उसको कल्याण होगा। आर्तध्यानादि नहीं होगा । वह दिव्य निमित्त से ज्ञानाबल से जानकर आचार्य आज्ञा देवे, नहीं तो नही देवे) (३) पच्चखाण देने से पहेले पेट की शुध्दि के लिए 'समाधिपान' पिलावें, उसमे पहेलें पानी पिना और थोडा थोडा विरेचन कराना, फीर इलायची - तज - केसर - तमालपत्र और शक्कर इन पांचोयुक्त दूध एकदम गरम करके फीर ठंडा करना, फीर पिलाना, फीर फोफलादि मधुर औषध का विरेचन कराना, ताकि उदग्नि (पित्त प्रकोप) आदि शांत हो जावे.) (४) फीर निर्यामक आचार्य सकल संघ से निवेदन करे की एक साधु संथारा ग्रहण कर रहे है, इसलिए उनका संथारा निरुपसर्ग पूर्ण होवे ऐसी मंगल कामना हेतू चतुर्विध संघ कार्योत्सग करे, फीर सामूहिक चैत्यवंदन करने के पश्चात चोविहार अनशन, या तिविहार अनशन (समाधि रहे इस हेतू) - के पच्चखाण करावे, फीर क्रमशः योग्य समय अवसर पर पानी का भी त्याग करावे. (५) फीर अनशन आराधक तपस्वी हाथ जोडकर सकल चतुर्विध संघ की यावत् ८४ लाख जीवायोनी को खमावे. (६) फीर महाव्रतो का पुनः उच्चारण गुरु करावे तथा अनशन योग्य हितशिक्षा फरमावे. (७) मन को शुभ ध्यान में स्थिर करने के लिए आचार्य उस तपस्वीको नवकार मंत्र के सूत्र और अर्थ के चिंतन में स्थिर होने की प्रेरणा दे । ४०

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