Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 80
________________ • उपाय, ६३ शलाका पुरुषो का जीवन चरित्र आदि अनेक विषयो का यथार्थ निरुपण सहीत अनेक श्रुतरत्न है । , ४६६) धर्म के नामपर कुल परंपरा के नाम पर, देवी-देवताओ या पितृ के नाम पर छ: काय के जीवो की हिंसा करनी यह मिथ्यात्व है । (अधर्म का धर्म समजना यह मिथ्यात्व ) ४६७) परिग्रह धारी, पाखंडी, ढोंगी असाधु को साधु मानना - यह भी मिथ्यात्व है । ४६८) धार्मिक क्रिया करनेवाली व्यक्ति को प्रोत्साहित करना, प्रशंसा बहुमान करना भी एक बडी धर्मसेवा है । ४६९) सुत्र का शुध्द उच्चारण कर्म निर्जरा का हेतु है, तथा अशुध्द उच्चारण अतिचार का हेतु है । ४७०) अन्यतीर्थीक (अन्यदर्शनीयों के ) युक्ति, ऋध्दि, आंडबर, चमत्कार, विध्वतां, भय या प्रलोभन में न फँसकर केवली प्ररुपीत जैन धर्म में स्थिर रहेने से भी विशिष्ट कर्म निर्जरा होती है । ४७१) सूत्र का उल्टा अर्थ कहेने समजानेवाला, या सूत्र से विपरीत अर्थ कहेने - समजानेवाला उत्सूत्र प्ररुपक अनंत संसारी बनता है । ४७२) व्याख्यान या वाचना सुनता हुआ शिष्य जहाँ आवश्यक हो वहाँ बीच में प्रसन्नतापुर्वक हुँकार करे, तथा सुत्रार्थ सुनने पर 'तहत्ति' शब्द का प्रयोग करे, अथवा, गुरुदेव आपने कहा, इसी प्रकार है, पूर्ण सत्य है, इत्यादि कहे ।

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