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अध्यवसाय रुप अनेक कूटो से युक्त है । वहाँ शीलरुपी सौरभ से महकता, मनोहर नंदनवन है । संघ रुप सुमेरु में जीवदया रुप गुफाएँ है, श्रेष्ठ - तेजस्वी मुनिगण रुप शेर (सिंह) से आकीर्ण है । ज्ञान दर्शन - चारित्र रुप विविध देदीप्यमान रत्नो से और आमऔषधि आदि २८ लब्धिरुप रहस्यमय जडीबुट्टीयोंसे संघ सुमेरु शोभायमान है।
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संघ रुप सुमेरु में संवर रुप जल के सतत प्रवाह रुप झरने है, और श्रावकगण रुप मोर धर्मस्थान रुप रम्यप्रदेशो में आनंद विभोर होकर स्वाध्याय-स्तुति रुप प्रचुर ध्वनी कर रहे है। संघ सुमेरु पर विनय गुण शोभित मुनिगण रुप स्फुरायमान विद्युत से चमकते शिखर है, जहाँ विविध संयम गुण संपन्न मुनिवर ही कल्पवृक्ष वन है, जो धर्मरुप फल और विविध आंतर रिध्दि रुप फूलो से युक्त है।
ऐसे वह महामंदर (मेरु पर्वत राजा) रुप संघ को मैं विनम्रता के साथ वंदन करता हुँ ।
४५२) आत्मगम ज्ञान जीव को कोई न कोई निमित्त से होता सकता है । ४५३) जंबुस्वामी १६ वर्ष की उम्र में ८ पत्नीयों का त्याग करके दिक्षा ली और ८० साल की उम्र में मोक्ष में गए ।
४५४) तिसरे पट्टधर प्रभवस्वामी ३० वर्ष की उम्र में दिक्षा लेकर ८६ वर्ष की उम्र में स्वर्ग में गए ।
४५५) चौथे पट्टधर आ. शय्यंभवसूरि २८ साल की उम्र में दिक्षा लेकर ६२ साल की उम्र में स्वर्ग में गए ।
४५६) पांचवे पट्टधर आ. यशोभद्र स्वामी २२ साल की उम्र में दिक्षा लेकर ८६ साल की उम्र में स्वर्गवासी हुए ।