Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 76
________________ ४४१) जो नम्र, सरलतावाला, विनयी, दृढ धर्मी, पापभीरु जीव है वह तेजो लेश्या वाले जीव है। ४४२) कषाय जिसके अल्प है, मितभाषी, प्रशांत चित्त, जितेन्द्रीयता यह पदमलेश्या वाले जीव के लक्षण है। ४४३) जो शुक्ल ध्यान में लीन है, अष्ट प्रवचन माता के निर्मल पालक है, उपशांत और जितेन्द्रीय है - वह शुक्ल लेश्या वाले जीव है। ४४. श्री नंदिसूत्र ४४४) जहां गुणरुपी भव्य भवन है, जो श्रुतज्ञान रुप रत्नो से भरे हुए है । विशुध्द सम्यकत्वरुप गलीयोंसे संयुक्त तथा अतिचार रहित अखंड चारित्ररुप किल्ले से जो सुरक्षित है, ऐसे 'संघ नगर' का सदा कल्याण हो। ४४५) १७ प्रकार का संयम, ये संघरुपी चक्र की नाभी है, छः बाह्य और छ: अभ्यंतर तप रुप चक्र संघ के १२ आरे है, संघरुप चक्र की परिधि (घेरावो) सम्यकत्व है, ऐसे संघ को मेरा नमस्कार हो । जो प्रतिचक्र से रहित है । अतुलनीय अद्वीतीय है, ऐसे चक्ररुप संघ की जय हो। ४४६) संघ रुपी रथ के उपर १८,००० शील गुण रुपी उँची ध्वजाएँ लहेरा रही है, तप और संयम रुप घोडे जुडे हुए है, पांच प्रकार के स्वाध्याय का मंगल मधुर ध्वनी (नंदीघोष) नीकल रहा है, ऐसे मोक्ष पथ गामी रथरुपी संघ का सदा कल्याण हो ।

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