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४८९) चावल या गन्ने के खेत में, कमल के तालाब के पास, या जिनमंदिर के पास या वन (जंगल) में, या बागबगीचे (उद्यान ) में कीसी को दिक्षा देने में आवें तो वह सबसे उत्तम (श्रेष्ट ) है ।
४९०) साधु का वर्ण नवपद में श्याम (काला) बताने में आया है क्योंकि यह पंचपरमेष्ठि के वर्ण का 'मिश्रण' है, इसलिए ।
४९१) जिनमंदिर कौन बना सके ?
न्याय + नीती-प्रमाणिकता पूर्वक धन का उपार्जन करनेवाला, अच्छे शुभ आशयवाला, और देव - गुरु की आज्ञा का पालन करेनवाला श्रावक को ही जिनमंदिर बनाने का अधिकार है, अन्य कीसी को नहीं, ऐसा षोडशक प्रकरण ग्रंथ में कहा गया है।
४९२) गुरु के स्तुप करने के बहोत से उल्लेख ग्रंथ में है, मथुरा में भी ५२७ गुरु पादुकाएँ थी । ऐसा ज्ञान दिपीकायाम में उल्लेख है । ४९३) शत्रुंजय महातीर्थ पर विशेष रुप से 'ध्यान' करना चाहिए । हर - साधु-साध्वी के जीवन में ४ प्रकार के गुरु होते है ।
१. सम्यकत्व गुरु= जिन से धर्म प्राप्त हुआ, धर्म श्रध्दा दृढ हुई । २. दिक्षा गुरु = जिसने संसार से छुडाया, विरती प्रदान की । ३. बडी दिक्षा गुरु = जिसने पांच महाव्रत प्रदान कीये
४. श्रुत गुरु = जिसने शुध्द तत्वज्ञान (सम्यगज्ञान) शीखाया ।