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२६५) विगई वापरनेसे पहेले स्थवीर (गुरु) की अनुमति (आज्ञा)
मिलनी आवश्यक है। २६६) जो कोई साधु को अपने स्वजन के घर गोचरी जाना हो, तो
स्थवीरो की अनुमती मीलने पर ही बहुश्रुत-आगमज्ञ साधु के
साथ संघाटक रुप से जाना कल्पे। २६७) शय्यात्तर की अनुमति बिना कोई चीज अन्य स्थान में ले जानी
नहीं कल्पे। २६८) विहार के स्थान में उस मकान में 'जहाँ मुख्य स्थवीर आज्ञा
देवे' उस जगह मुनि बैठे-स्वाध्याय करे-शय्या करे । २६९) आचार्य को एकस्थान में स्थायी रहेना न कल्पे । आचार्य शुध्द
उच्चारण वाले होने चाहिए । आचार्य आदेश वचनी होने चाहिए। आचार्य वृध्द और बिमार साधु की व्यवस्थित वैयावच्च व्यवस्था करनेवाले होने चाहिए । आचार्य क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को भी दूर करनेवाले होने चाहिए। आचार्य, यदि परस्पर साधूओं में कलह होवे तो बिना पक्षपात कीये मध्यस्थ भाव से क्षमापना और उपशमन करानेवाले होने
चाहिए। २७०) प्रतिमाधारी भिक्षु को मौन में भी ४ प्रकारकी भाषा बोलनी
कल्पे। १. याचनी = आहार-वस्ती की याचना करने के लिए। २. पृच्छनी = स्वाध्यायादि से उद्भावित प्रश्न का उत्तर पूछने के
लिए। ३. अनुज्ञापनीय = शय्यात्तर से अनुज्ञा लेने के लिए। ४. पृष्ट व्याकरणी-कीसी के द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देने के
लिए।