Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 64
________________ ४१. श्री ओधनिर्युक्ति सूत्र ३५०) विहार करते जाते हुए (एक स्थान से दुसरे स्थान ) तब भी साधु . सूत्र पोरीसी न चूके । ३५१) जब देवता का उपद्रव हो, तो ( व्यंतरका आदी) (१) विगई नहीं वापरनी (आयंबिल करना) (२) नमक न लेना (३) दशीवाला वस्त्र न वापरना (४) लोहे (लोखंड) को स्पर्श नहीं करना । ३५२) जहाँ-जहाँ अलग भूमि आवे (अलग मीट्टी) आवे, वहाँ साधु पैर पोंज लेवे । गृहस्थ देखे ऐसे नहीं पूंजे । ३५३) मुनि को रस्ता पूछते समय प्रीतीपूर्वक, और कमसे कम २ व्यक्तिओ को रस्ता पूछना जिससे गलत रस्ते पर न चला जावे । ३५४) चारो तरफ ओस (धुम्मस) हो तब बाहर न नीकले, पूरे शरीर को ढक दे। इस प्रकार कंबल ओढकर मकान में बैठे - कुछ भी क्रिया न करे, मौन रहें, अगर कुछ जरुर पडे तो सिर्फ इशारे से ही बाते करे । ३५५) विहार करते हुए रस्ते में कोई गाँव आवे, तो वहाँ से होकर जाना, क्योंकि वहा रहे हुए जिन मंदिर दर्शन का लाभ मीले, कोई आचार्य वहाँ हो तो वंदन का लाभ मिले, कोई ग्लान मुनि हो तो सेवा का लाभ मिले । ३५६) रस्ते में (विहार) कोई बिमार (ग्लान) साधु साध्वी मिले तो उनकी सेवा वैयावच्च करके फीर ही आगे जाना चाहिए । ३५७) जब डॉक्टर के पास जाना हो तो कमसे कम ३ साधु साथ में जावे तथा मलिन वस्त्र नहीं, परंतु बिलकुल साफ / शुध्द श्वेत वस्त्र पहनकर जावे ।

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