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३४४) संयोजन दोष रसवृध्दि का कारण होने से, कल्पे नही, लेकिन
शेष बची हुई गोचरी न परठनी पडे उस हेतु से, या बालमुनि को
या ग्लान (बिमार) मुनि को कल्पता है। ३४५) विरुध्द द्रव्य एकसाथ वापरने की मनाई है जैसे मूंग और दूध । ३४६) रोग में, उपसर्ग सहन करने के लिए, ब्रह्मचर्य के विशेष पालन
में, प्राणीदया के लिए, तप के लीए, और संथारा (अनशन व्रत)
इन छ: कारण में लिए आहार का त्याग मुनि करें। ३४७) आहार नहीं करने से (अति उपवास आदि) प्राण बल गल जाता
है, उत्साह नाश होता है, शरीर के सारे अंग शिथील बनते है, सत्य का नाश होता है अरति की वृद्धि होती है, इन ६ कारणो के
लिए जिनेन्द्रो ने आहार करना बताया है। ३४८) इस सूत्र की वृत्ती में कहा है कि आधाकर्मी आहार वापरना,
वमन (उल्टी) विष्टा, मदिरा (दारु) तथा गौमांस समान है,
इसलिए श्रमण-श्रमणियाँ इसका त्याग करे । ३४९) अचलगच्छ के माणिकय सागर सूरि ने इस सूत्र पर २८३३
श्लोक प्रमाण दीपीका की रचना की हैं तथा अचलगच्छाधिपति जयतिलक सूरी के शिष्य मुनि क्षमारत्न सागरजी ने इस पर अवचूरी लीखी है।