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२७१) श्रेणीक महाराजा और चेल्लणा राणी के 'रुप और भोग' को
देखकर कुछ साधु-साध्वीयोने नियाणा बाधा, फीर भगवान महावीर के उपदेश से इस पापरुप अतिचार की आलोचना
(प्रायश्चित) कीया। २७२) नियाणा करनेवाला जीव नियाणा पूरा करके अनंत इच्छावाला,
महाआरंभी महापरिग्रही बनकर नरक में उत्पन्न होकर अंत में दुर्लभबोधि बनता है । नियाणे नौ प्रकार के होते है। .
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३८. श्री जीतकल्प सूत्र २७३) प्रायश्चित से ही चारित्र की विशुध्दि होती है । प्रायश्चित के दस
प्रकार है । १. आलोचना २. प्रतिक्रमण ३. तदुभय ४. विवेक ५. कायोत्सर्ग ६. तप ७. छेद ८. मूल ९. अनवस्थाप्य १०. पारांचित. १. आवागमन संबंधी १०० कदम उपाश्रय से बाहर जाने आदि के संबंधी गीतार्थ आचार्य मिले उनके पास आलोचना प्रायश्चित
लेना।
२. गुरु की आशातना, दशविध सामाचारी के पालन में प्रमाद, विकथा आदि में प्रतिक्रमण प्रायश्चित आवे । ३. आहार, उपधि उपकरण आदि अविधिपूर्वक परठना यानि विवेक प्रायश्चित. ४. गमन-आगमन, नाव के द्वारा नदी उतरनी, सावध - निरवद्य स्वप्न आदि में कार्योत्सर्ग प्रायश्चित आवे.