Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 56
________________ २८३) अपकाय का परिभोग, अग्निकाय का समारंभ और मैथुन सेवन . से जीव बोधिबीज को जलाकर दुर्लभ बोधि बनता है। २८४) नवकार सीखने के बाद इरियावहि सूत्र भी विधिपूर्वक सीखना क्योंकि चैत्यवंदन, प्रतिक्रमण, गमनागमन आदि कोईभी क्रिया करने से पहले इरियावहि करनी जरुरी है, फिर नमोत्थुणं फीर लोगस्स इस क्रम से क्रमशः सूत्र शीखने चाहिए। स्वर, व्यंजन, मात्रा बिंदु, पदच्छंद, पद अक्षर से विशुध्ध, एक पद के अक्षर में दुसरे न मील जाए ऐसे, तथा अन्य भी कई गुणसहित सूत्रो का अध्ययन करना चहिए। २८५) अनशन व्रत वाले जीव को यदि वर्धमान विद्या से अभीमंत्रित वासक्षेप देने में आवे तो वह आराधक बनता है । वर्धमान विधि की इस मंत्रित वासक्षेप से सर्व विघ्न-उपद्रवो का शमन होता है। २८६) धार्मिक सूत्र सामायिक लेकर कंठस्थ करने, पढने चाहिए। और सूत्र याद होते जाने पर १-१ आयंबिल अंत में करने चाहीये । २८७) बालक को पहले धर्मकथा धर्म में स्थिर, दृढ धर्मी और जिनमतानुरागी श्रध्दावान् बनाके फीर क्रमशः छोटे छोटे पच्चखाण दिलाकर आगे बढाते बढाते देशविरतिधर-सर्व विरतिधर बनाना। २८८) मासक्षमण करनेवाला जीव यदि स्वाध्यायध्यान रहित हो तो १ उपवास का भी फल मिलता नहीं है । एकाग्रता से स्वाध्याय करनेवाले को अनंत कर्म की निर्जरा है। २८९) शरीर की विभूषा दिखे इस प्रकार से कपडे पहननेवाला जीव “विभूषा कुशील" हैं।

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