Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 54
________________ जैसे की मल-मूत्र परठने पर २५ श्वासोश्वास (१ लोगस्स) काउसग्ग प्राणातिपात हिंसा आदि का स्वप्न आवे को १०० श्वासोश्वास (४ लोगस्स) का काउसग्ग. मैथुन संबंधी स्वप्न में १०८ श्वासोश्वास काउसग्ग, सूत्र के उद्देश - समुद्वेश-अनुज्ञा में २७ श्वासोश्वास का उसग्ग आवे. २७४) स्वाध्याय या गोचरी भूमि को प्रमाजे नहीं, अयोग्य को वाचना देवे, विगई का सेवन, आदि में १ उपवास का प्रायश्चित आता है, तथा संनिधी रखने के दोष में ३ उपवास का प्रायश्चित । २७५) क्रोध-मान में आयंबिल, माया में एकासना और लोभ में उपवास,विद्यामंत्र आदि प्रयोग में प्रत्येक दीठ १-१ आयंबिल. साधु के शीघ्र दौडना, गीत गाने, मोर-पोपट आदि के आवाज निकालने, जोर जोर से बोलने इत्यादि पर - १ उपवास का प्रायश्चित । ३९. श्री महानिशीय सूत्र २७६) भवभीरु, माया रहित सत्यभाषावाले जीव को ही आलोचना देनी चाहिए। २७७) प्रमाद से, या मैं पकडा जाऊंगा इस भय से या, आलोचना करने की शक्ति नहीं है इस भाव से, ८ मद से, ३ गारव से, दुसरों के नाम से आलोचना करने से, कीसी के पास उस प्रकार का प्रायश्चित सुनकर उस मुताबीक खुद ही प्रायश्चित करे तो आलोचना सही (सम्यक) नहीं होती है।

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