________________
२५१) दिवस आदि की संपूर्ण शुध्दी न हो, और उस दिन कार्य करना अत्यंत जरुरी लगे तो उत्तम योग देख लेना, ऐसे प्रसंग में अगर रवियोग हो तो दिवस की अशुध्धि जरा भी नुकसान करती नहीं है।
२५२) रविवार को रविपुष्प अमृत योग-जप और साधना के लिए श्रेष्ठ है तथा गुरुवार के पुष्यामृत योग वेपार और आर्थिक लाभ के लिए विशेष उपयोगी हैं ।
३२. श्री देवेन्द्रस्तव पयन्ना सूत्र
२५३) श्रावक जीवाजीवादिक नौतत्व का ज्ञाता होना ही चाहिए। तो ही वह सच्चा और पक्का श्रावक बन सके ।
३४. श्री नीशीथ सूत्र
२५४) अकार्य (पाप) करना दुष्कर नहीं है, लेकिन अकार्य (पाप) का प्रायश्चित लेना दुष्कर है ।
३५. श्री बृहद कल्प सूत्र
२५५) उपशांतता ( उपशम) ही संयम जीवन का सार है ।
४६