Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 49
________________ २४५) पूर्वो में शास्त्रोक्त विधि अनुसार विगई त्याग, उणोदरी, उग्र तप, परिषह जय करके शरीर को कृशकाय करनेवाला मुनि अंत समय ( मृत्यु समय) अनशन ( संथारे) की आराधना निर्भय होकर कर सकता है । २४६) कुछ न्यून पूर्व क्रोड वर्ष के चारित्र वाला मुनि भी कषाय कलूषित चित्तवाला बनकर १ मुहूर्त में हार जाता है । ३१. श्री गणिविज्जा पयन्ना सूत्र २४७) रवि = मंगल = शनिवार से बडी तपश्चर्या की शुरुआत तथा अनशन ( संथारा) करना । विहार तिथी विचार - एकम में लाभ नहीं, दुज - विपत्ति, तीज - अर्थ सिध्द, पंचमी - विजय आण रहे, सप्तमी में बहुत गुण है, दशमी को प्रस्थान करने से मार्ग निष्कंटक (उपद्रव रहित ) बने, एकादशी को - आरोग्य में विघ्न रहितता, तेरस - जो अमित्र बने हो वह वश होवे । २४८) प्रथम विहार, छठ्ठ, आठम, नोम, बारस, चौदस, पूनमअमावस दोनो पक्ष में वर्ज्य है । - २४९) योगसाधना - विशिष्ट स्वाध्याय आदि के लिए पुष्य - हस्त = अभिजीत और अश्विनी नक्षत्र में कार्य प्रारंभ करना । २५० ) " उत्साहो प्रथम मुहूर्त ” कहकर इस सुत्रकार ने कहा है की, कोई भी कार्य करने से पहेले उत्साह होना चाहिए, उत्साह को सर्व प्रथम मुहूर्त बताया गया है, तथा तीर्थ यात्रादि प्रसंग में तो उत्साह होना ही चाहिए ।

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