Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 46
________________ २२१) जीवन पर्यंत की हुई तमाम धर्म आराधनाओ के उपर धजा कलश-शिखर-मुगुट समान संथारा अनशन व्रत है। २२२) अष्टमंगल से भी संथारा अधिक उत्कृष्ट मंगल है । २२३) जिस प्रकार सभी व्रतो में ब्रह्मचर्य व्रत मुख्य है, पर्वत में मेरु पर्वत, सागर में स्वयंभूरमण, तारो में चन्द्रमा मुख्य है, उसी प्रकार सर्व शुभ क्रियाओ में संथारा मुख्य है। ३०.१ गच्छाचार पयन्ना सूत्र २२४) स्वच्छंदाचारी, उपकरण में मुर्छित, अपकाय के हिंसक, आरंभ में प्रवृत्त करानेवाले, मूल-उत्तर गुण भ्रष्ट, सामाचारी विराधक, नित्य आलोचना नही करनेवाले, निद्रा विकथा परायण आचार्य शास्त्र में अधम कहे गए है। २२५) आलोचना (प्रायश्चित) स्वगच्छी (गीतार्थ) आचार्य के पास या उनके अभाव में उपाध्याय के पास, अभाव में पन्यासजी के पास अभाव में स्थवीरो के पास, अभाव में गणावच्छेदक के पास, उनके अभाव में परगच्छिय गीतार्थो के पास, उनके अभाव में गीतार्थ-लेकीन दिक्षा छोडकर गृहस्थ बने हो उनके पास, उनके अभाव में सम्यकत्व भावीत देवता के पास, या उनके अभाव में जिन प्रतिमा समक्ष या उनके अभाव में पूर्व दिशाइशान सन्मुख अरिहंत-सिध्ध साक्षी से भी अनिवार्य रुप से लगे हुए दोष, अतिचार की सुक्ष्म आलोचना करनी चाहिए। लेकिन, सुसाधु-साध्वीजीओ को निर्मल संयम पालने के लिए आलोचना करनी अनिवार्य है।

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