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१२. उववाई सूत्र
१७३) अष्टमंगल में आया हुआ श्रीवत्स-तीर्थंकर परमात्मा के हृदय का
अवयव (आकार) है। १७४) अप्रतिहत ग्रामानुग्राम विहार यानि एक गाँव के पास में रहे हुओ
दुसरे गाँव को उलंघे बिना उत्सुकता के अभाव रहित विहार । १७५) भगवान महावीर के कुछ साधु ‘मोक प्रतिमा' वहन करते हुए
विचर रहे - मोक प्रतिमा यानि मुत्र का प्रारंभ परठने संबंधी के अंतर अभिग्रह यह प्रतिमा गाँव के बाहर, शरद ऋतु या ग्रीष्म ऋतु में की जाती है । इसमें ६-७ उपवास की तपस्या कीये भी
यह मोक प्रतिमा का स्वीकार कीया जा सकता है। १७६) मोक प्रतिमा-यानि शरद ऋतु के प्रारंभ मे या ग्रीष्म ऋतु के अंत
में गाँव-नगर के बाहर वन-पर्वत या गुफा में यह धारण करनी कल्पें, इसमें साधु को खुद का मुत्र खुद ही दिन में जीतना आवे उतना पिना होता है, रात को नहीं । उपवास से करे तो ७ दिन तक और आहार करके फीरे तो ६ दिन तक यह मोक प्रतिमा का वहन होता है । यह लघुमोक प्रतिमा। बडी मोक प्रतिमा में उपवास ८ दिन, या आहार करके करे तो७ दिन का विधान है । इसमें कृमी रहित-वीर्य रहित-चीकनाई रहीत और रक्तकण रहित मुत्र जीतना आये उतना सब पिने का
विधान है । ऐसा छेद सूत्र के व्यवहार सूत्र में बताया गया है। १७७) प्रश्न - अरस विरस आहार यानि क्या ?
उत्तर - अरस आहार यानि (रसरहित) हो गए जूने चावल इत्यादी का आहार, इसी प्रकार आंत-प्रांत आहार यानि जधन्य (हलके धान्य जैसे की वाल आदि का आहार)