Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 35
________________ १६६) साधु के आगमन के निमित्त से जिस उपाश्रय का सफाई (धुलाई) रंग रोगान, मच्छर भगाने के लिए अग्नि का धुँआ या ऐसा कार्य होता हो वह दोष युक्त स्थान में साधु न ठहरे । १६७) साधु को सब्जी और दाल की अधिकतावाला भोजन नहीं करना चाहिए । १६८) रस्ते पर चलते चलते नीचे गीरे हुई कोई वस्तु भी लेनी, बिना पूछे लेनी साधु या श्रावक को नहीं कल्पें । १६९) एक ब्रह्मचर्य व्रत की आराधना से सभी व्रतो की आराधना होती है, और एक इसीकी विराधना से सभी व्रतो की विराधना होती है । १७० सामने से आमंत्रण मिलने पर भी जो ब्रह्मचर्य से पतित होता नहीं है, उन्ही का स्वाध्याय, ध्यान, ज्ञान, आत्मबोध, तपश्चर्या सफल है, सार्थक है । १७१) जहाँ जहाँ चित्त की भ्रांती होवे, मन में श्रृंगार रस पैदा हो, ऐसे स्थानो, जगहो का ब्रह्मचारी को त्याग करना चाहिए । १७२ ) प्रश्न - जिन शासन का श्रमण (साधु) कैसा हो ? उत्तर श्रुतधारक, ऋजु (सरल), आलस रहित, सर्व जगत जीव वात्सल कर्ता, सत्यभाषक, प्रवचन माता के द्वारा कर्म - ग्रन्थी छेदक, स्वसिध्धांत निपुण, हर्षादि रहित, बाह्यअभ्यंतरादि तप में उर्ध्यमवान, इन्द्रीय दमनकर्ता, नियाणात्यागी, महाव्रत के भार को वहने में समर्थ, परिषह विजेता, अप्रमत्त विहारी, कार्योत्सर्ग में उर्धकाय और शुक्लध्यान में निश्चल, जितेन्द्रीय ऐसे जिनशासन के साधु रहेवे ।

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