Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 37
________________ १७८) आतापना के तीन प्रकार - १. निष्पन्न आतापना यानि - भूमि पर, सीधा सोये, उल्टा सोये या दाही या बाही करवट (पर) सोये । २. अनिष्पन्न आतापना विविध आसन में रहना जैसे की गोदोहिकासन, उत्कुटासन, वीरासन आदि । - ३. उर्ध्वस्थानातापना यानि - हाथ उपर रखने, एक पैर पर खडा रहना, समान पैर पर खडे रहना आदि । १७९) छेद, प्रायश्चित यानि पांच-पांच दिवस के क्रम से दिक्षा पर्याय का छेद करना । १८०) बाहर निकलते समय 'अष्टमंगल' के दर्शन करके निकलने से विघ्न टल जाते है । १८१) अष्टमंगल के नाम स्वस्तीक, श्रीवत्स, नंदावर्त, वर्धमानक, भ्रद्रासन, कलश, मत्सययुगल, दर्पण । - १८२) देवी देवताओने भगवान महावीर तथा गौतमादि श्रमणो के सामने 'अष्टमंगल' आलेखीत कीये । १८३ ) केशीकुमार श्रमण ने श्रावक बने हुए प्रदेशी राजा को कहा की 'पहेले तु स्मरणीय होकर अब अस्मरणीय मत बनना' अर्थात पहेले तु दुसरो को अनुकंपा दान देता था, अब जैन धर्म स्वीकारने के बाद दुसरो के दान देना बंद मत कर देना, नहीं तो हमको उससे अंतराय बंधेगी और जिनशासन की अपभ्राजना (हीलना) होगी । १८४) चंद्र / सूर्य / नक्षत्र और ग्रह इन चारो की मनुष्यो के उपर सुःख या दुःख को असर होती है, इस लिए जिनेश्वरो ने कहा है कि दिक्षा आदि कार्य शुभ क्षेत्र, शुभ दिशा, शुभ तीर्थ - नक्षत्र - मुहूर्त में करने चाहिए ।

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