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६८) कोई व्यक्ति साधु को पूछे की धर्मशाला, भोजनशाला, पानी की प्याउ, होस्पीटल बनाने में पुण्य है या नहीं, तो साधु हा या ना, कुछ भी जवाब न दे, मौन रहे, वे ही सच्चा साधु है ।
जो यदि हा कहे तो साधु को उसके निर्माण में होनेवाली छकाय की जीवहिंसा का दोष लगे और ना कहे तो उसके द्वारा जरुरत मंद लोगो की पूर्ण होनेवाली जरुरतो के अंतराय वृती छेद का दोष लगे इसलए मुनि मौन रहे ।
६९) जो सदा गुरुकुल वास में रहते है वो ही जीव सम्यक ज्ञान के अधिकारी बन सकते है और दर्शन तथा चारित्र में स्थिर बनते है । अतः वह यावज्जीव धन्यवाद के पात्र है ।
७० ) गुरु का नाम छुपाने वाला अनंत संसारी बनता है ।
७१) प्रवचन देनेवाला साधु श्रोताजनो का सम्यकत्व स्थिर बने ऐसा बोले, लेकिन श्रोता मन में शंकित बने ऐसा न बोले ।
७२) जो साधु गीतार्थ गुरु के पास के श्रुतज्ञान शीखा हो, उसे सम्यक प्रकार से धारण करके उनकी आज्ञा लेकर वह दुसरो को पढ़ानेशीखाने का उर्घम करके ऋणमुक्त होने का प्रयत्न करे पर, सुखशीलीया बनकर यूँ ही बैठा न रहे ।
७३) बाल मुनि, ग्लान (बिमार) मुनि और वृद्ध मुनियों के लिए ही सुबह में गोचरी ( नवकारशी) का विधान है । सभी साधु के लीए नहीं ।
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७४) जिस प्रकार धाव को रुझने के लिए मलम लगाने में आवे इस प्रकार साधु संयम में सहायक शरीर को सीर्फ टीकाने हेतु गोचरी करे ।