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९. अनुत्तर रोववाई सूत्र १५३. संसृष्ट (झुठेहाथ से दिये हुए) उज्झितधर्मा (फेंक देने योग्य)
अन्य कोई जीसे लेने की भी इच्छा न करे ऐसे शुध्ध ओदन (भात-चावल) से मुझे छठ्ठ (बेले) के पारणे आयंबिल करना
ऐसा संकल्प धन्ना अणगार ने कीया । १५४) १४००० साधुओ में सर्व श्रेष्ठ, स्वयं भगवान महावीर के द्वारा
प्रशंसित धन्ना अणगार के शरीर का वर्णन इस प्रकार है। भूख से रुक्ष हुए शरीर में खून मांस बीलकुल नाममात्र, सूखी हुई त्वचा (चमडी), हड्डीयाँ दीखे और गीन सके ऐसी छाती-कमर (पीठ) आदि की पसलीयाँ, पतली भुजाएँ (बाहु), सूखे होठमुँह, सीर्फ हड्डियाँ ही बची हो ऐसा शरीर, अंदर गया हुआ पेट
और आँखे मुरजायी हुई, लेकिन तप तेज से दिप्त चेहरा, लटकते हुए हाथ, कंपवा के जैसे कांपता हुआ पूरा शरीर, इस प्रकार धन्ना अणगार अंत में, व नौ महिने का दिक्षा पर्याय पालकर विपुलाचल पर्वत पर १ महिने का संथारा (अनशन) करके सर्वार्थ सिध्ध विमान में उत्पन्न हुए।
१०. प्रश्न व्याकरण - सूत्र
१५६) असत्य (जूठ) बोलने का फल-अल्प सुख, बहु दुःख,
महाभय, प्रगाढ कर्मबंध और दुर्गति १५७) अदत्तादान (चोरी) का फल = परिचितो में अप्रीतीकारक,
अपयश, अधोगति और लडाई का कारण है।