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६. ज्ञाता धर्मकथा सूत्र
१४४) जैसे संयम में स्खलित होनेवाले मेघमुनि को भगवान महावीर ने
निपुण वचनो से स्थिर कीये ऐसे ही संयम में प्रमादी-स्खलित
होनेवाले शिष्य को आचार्य निपुणता से पुन: स्थिर करे । १४५) कोई व्यक्ति संसार वृध्दिकर कर्म (द्रीअर्थीबाते) की बात करे तो
साधु-साध्वीयाँ को उस स्थान का त्याग कर देना चाहिए या कान बंद कर देने लेकिन ऐसी बात सुननी भी साधु-साध्वीयों के लीए
कल्पनीय नहीं है। १४६) उत्तम पुरुष (वासुदेव -बलदेव-चक्रवर्ती आदि) अपूतिवचन
होते है यानि एक बार बोले, जबान देवे, फीर कीसी भी संयोग मे
फीरे नहीं। १४७) लंबे शिथीलपणा सभर दिक्षा पर्याय से भी छोटी लेकिन जिनाज्ञा
मुताबीक अच्छा दिक्षा पर्याय ज्यादा उचित है । (पुंडरीककंडरीक के उदाहरण की तरह)
७. उपासक दशांग सूत्र
१४८) आनंद श्रावक - इन्होने भगवान के पास से जब श्रावक के १२
व्रत अंगीकार कीये तब भोगोपभोग के पच्चखाण इस प्रकार से कीये की, १) गंध काषायीक अंगपोछना (टुवाल) के अलावा त्याग,
(लाल सुगंधी टुवाल)