Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 22
________________ की विचारणा करके से पर्युषण बाद मे तप करे वो अतिक्रान्त तप. ११५) कोटी सहित तप यानि महिने में अमुक दिन अमुक तपश्यर्या करनी एैसा धारके जीवन के अंतिम श्वास तक ग्लान अवस्था में भी वह तप को कायम रखे वह कोटी सहित तप है । ११६) शिष्य के आसन पर बैठा रहकर ही अगर गुरु अर्थ पूछे तो शिष्य को प्रायश्चित आवे । खुद को सूत्र या ४. समवायांग सूत्र ११७) जल्दी जल्दी चलने से, अतिरिक्त शय्या - आसन रखने से, बात बात मे गुस्सा करने से, पीठ के पिछे निंदा करने से, अकाल में स्वाध्याय करने से, मीट्टी ( रज) वाले हाथ-पैर रखने से, सूर्यास्त होवे तब तक खाते-पीते रहने से, रात को जोर जोर से बोलने ऐसे कुल २० स्थानो से (कार्यो) से साधु को असमाधि होती है । ११८) रात्री भोजन करने से, शय्यातर के घर का आहार ग्रहण करने से, बारम्बार पच्चखाण लेकर भी आहार करने से, जान बुचकर हिंसा - मृषा - अदत के कार्य करने से, हस्तकर्म करने से, जमीकंद खाने से, आधाकर्म आहार खाने से, आसन बिछाए बिना बैठकर स्वाध्यायादि करने से इस प्रकार के दोषो के कारण चारित्र मलीन बनता है - शबल दोष लगता है । - ११९) कोई जीव को पानी में डुबाकर या मुँह बंद करके साँस रोककर या अग्नि के धुँवे से या शिरपर शस्त्र आदि मारकर घात (मृत्यू)

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