Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 14
________________ मैं आशा करता हूँ कि-जिज्ञासु महोदय इसका भली भाँति पठन द्वारा जैनागम सिद्धान्तरूप अमृत पी पी कर मन को हर्पित करेंगे, और इसके मनन से दक्ष जन चार अनुयोगों का स्वरूपज्ञान पायेंगे । तथा आचार्यवर्य इसी प्रकार दूसरे भी जैनाममों के विशद विवेचना द्वारा श्वेताम्बर-स्थानकवासी समाज पर महान उपकार कर यशस्वी बनेंगे। वि. सं. २००२ ) जैनमुनि-उपाध्याय आत्माराम मृगसर सुदि १ । लुधियाना (पंजाब) शुभमस्तु । बीकानेरवाळा समाजभूषण शास्त्रज्ञ भेरुदानजी शेठिआनो अभिप्राय आप जो शास्त्रका कार्य कर रहे हैं यह बड़ा उपकारका कार्य है। इससे जैनजनता को काफी लाभ पहुँचेगा. (ता. २८-३-५६ ना पत्रमाथी) ॥श्री॥ जैनागमवारिधि-जैनधर्मदिवाकर-जैनाचार्य-पूज्य श्री आत्मारामजीमहाराजानां पञ्चनद (पंजाब ) स्थानमनुत्तरोपपातिकसूत्राणा___मर्थबोधिनीनामकटीकायामिदम् सम्मतिपत्रम्. आचार्यवर्यैः श्री घासीलालमुनिभिः सङ्कलिता अनुत्तरोपपातिकसूत्राणामर्थबोधिनीनाम्नी संस्कृतवृत्तिरुपयोगपूर्वकं सकलाऽपि स्वशिष्यमुखेनाऽश्रावि मया, यं हि वृत्तिर्मुनिवरस्य वैदुष्यं प्रगटयति । श्रीमद्भिर्मुनिभिः सूत्राणामर्थान् स्पष्टयितुं यः प्रयत्नो व्यधायि तदर्थमनेकशो धन्यवादानहन्ति ते । यथा चेयं वृतिः सरला सुबोधिनी च तथा सारखत्यपि । अस्याः स्वाध्यायेन निर्वाणपदमभीप्सुनिर्वाणपदमनुसरद्भिर्ज्ञान-दर्शन-चारित्रेषु प्रयतमानैर्मुनिभिः श्रावकैश्च ज्ञान दर्शन चारित्राणि सम्यक् सम्प्राप्यात्मानस्तत्र प्रवर्तयिष्यन्ते । आशासे श्रीमदाशुकविमुनिवरो गीर्वाणवाणीजुषां विदुषां मनस्तोषाय जैनागमसूत्राणां साराविबोधाय च अन्येषामपि जैनागमानामित्थं सरलाः सुस्पष्टाश्च वृत्तीविधाय तांस्तान् सूत्रग्रन्थान् देवगिरा सुस्पष्ठयिष्यति । अन्ते च "मुनिवरस्य परिश्रमं सफलयितुं सरलां सुबोधिनी चेमां सूत्रवृत्ति स्वाध्यायेन सनाथयिष्यन्त्यवश्यं सुयोग्या हंसनिभाः पाठकाः।" इत्याशास्ते-- विक्रमाब्द २००२ श्रावणकृष्णा प्रतिपदा उपाध्याय आत्मारामो जनमुनिः । लुधियाना શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્ર: ૧

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