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पण्णवणासुत्ते सत्तरसमे लेस्सापए चउत्थुद्देसे [सु. १२२९ - से जहाणामए खयरसारे इ वा कैयरसौरे इ वा धमाससारे इ वा तंबे इ वा तंबकरोडए इ वा तंबच्छिवाडियाँ इ वा वाइंगणिकुँसुमए इ वा कोइलँच्छदकुसुमए इ वा1 जवासाकुसुमे इ वा कैलकुसुमे इ वा>। भवेतारूवा ?
गोयमा ! णो इणढे समढे, काउलेस्सा णं एत्तो अणितरिया जाव अमणा५ मयरिया चेव वण्णेणं पण्णता ।।
१२२९. तेउलेस्साणं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए ससरुहिरे इ वा उरब्भरुहिरे इ वा वराहरुहिरे इ वा संबररुहिरे इ वा मणुस्सरुहिरे इ वा बालिंदगोवे इ वा बालदिवागरे इ वा संझब्भरागे इ वा
गुंजद्धरागे इ वा जाइहिंगुलुए इ वा पवालंकुरे इ वा लक्खारसे इ वा १० लोहियक्खमणी इ वा किमिरागकंबले इ वा गयतालुए इ वा चीणपिट्ठरासी इ वा
पॉलियायकुसुमे इ वा जाँसुमणाकुसुमे इ वा किंसुर्यपुप्फरासी इ वा रत्तुप्पले इ वा रत्तासोगे इ वा रत्तकणवीरए इ वा रत्तबंधुजीवए इ वा । भवेयारूवा ? गोयमा ! णो इणढे समढे, तेउलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव वनेणं पण्णत्ता।
१२३०. पम्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णता ? गोयमा ! से जहाणामए चंपे इ वा चंपयछल्ली इ वा चंपयभेदे इ वा हलिद्दा इ वा हलिद्दगुलिया इ वा हलिद्दाभेए इ वा हरियाले इ वा हरियालगुलिया इ वा हरियालभेए इ वा चिउरे इ वा चिउररागे इ वा सुवण्णसिप्पी इ वा वरकणगणिहसे इ वा वरपुरिसवसणे इ वा अल्लइकुसुमे इ वा चंपयकुसुमे इ वा कैणियारकुसुमे इ वा कुहंडियाकुसुमे इ वा सुवण्णजूहिया इ वा सुहिरण्णियाकुसुमे इ वा कोरेंटमलदामे इ वा पीयासोगे इ वा पीयकणवीरए इ वा पीयबंधुजीवए इ वा । भवेतारूवा ?
१. खइर° पु२ । खदिर मु०॥२, ४-५. °सारए इ वा म०प्र० पु२ ॥ ३. कहर पुर मु०॥ ६. °याए इ मु० ॥ ७,९. °कुसुमे इ वा म० पु२॥ ८. लच्छाकु जे० ॥ १०. > एतचिह्नमध्यगतः पाठो मलयवृत्ती नव्याख्यातः ॥ ११. कलकुसुम इवा इति पाठःप्र० पु१ पु३ प्रतिषु श्रीधनविमलगणिकृतस्तबके च नास्ति। कलमुकुसुमे इ वा पु२ । “कलसकुसुमे इ वा-कलसकुसुम फूल जेहवो" इति श्रीजीवविजयगणिकृतस्तबके ॥ १२. अकंततरिया जे. ध०॥ १३. वा इंदगोवे इ वा बालि मुद्रिते एव, मुद्रितादर्श उपलभ्यमानोऽयं पाठो भ्रान्तिजनित एव, न हि कस्मिंश्चिदप्यादर्शे उपलभ्यते॥ १४. कुरुए इ पु२ ॥ १५. गइता जे. ध०॥ १६. पारियाय° पु२ । पारिजाय मु० ॥ १७. जासुमिणाकु जे० ॥ १८. °यकुसुमरासी ध०॥ १९ भवे एयारूवा इति मलयवृत्तिगतावतरणे ॥ २० °मए चंपा इ जे० ध० म० प्र०॥ २१ कण्णियार' मुद्रिते, मुद्रितमलयवृत्तौ च ॥ २२. कोडेदृमल्ल जे०॥
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