Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 382
________________ २१. एगवीसइमं ओगाहणसंठाणपयं [सुत्तं १४७४. एगवीसइमपयस्स अत्थाहिगारपरूवणं] १४७४. विहि १ संठाण २ पाणं ३ पोग्गलचिणणा ४ सरीरसंजोगो ५। दव्व-पएसष्पबहुं ६ सरीरओगाहणप्पबहुं ७॥ २१४॥ ५ [सुत्ताई १४७५-१५५२. १-३ विहि-संठाण-पमाणदाराइं] १४७५. कति णं भंते ! सरीरया पण्णत्ता १ गोयमा ! पंच सरीरया पण्णत्ता। तं जहा-ओरालिए १ वेउविए २ आहारए ३ तेयए ४ कम्मए ५। [सुत्ताई १४७६-८७. ओरालियसरीरे विहिदारं] १४७६. ओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे १० पण्णत्ते । तं जहा-एगिदियओरालियसरीरे जाव पंचेंदियओरालियसरीरे । १४७७, एगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा-पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे जाव वणप्फइकाइयएगिदियओरालियसरीरे । १४७८. [१] पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे १५ पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा-सुहुमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य बादरपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य। [२] सुहुमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते। तं जहा-पजत्तगसुहुमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य अपज्जत्तगसुहुमपुढविक्काइयएगिंदियओरालियसरीरे य। [३] बादरपुढविक्काइया वि एवं चेव। १४७९. एवं जाव वणस्सइकाइयएगिदियओरालिय त्ति । १४८०. बेइंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते १ गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा–पजत्तबेइंदियओरालियसरीरे य अपज्जत्तबेइंदियओरालियसरीरे य। . २० १. पमागे हारिवृत्ति-मलयवृत्तिगतसूत्रपाठावतरणे, हारिवृत्तिप्रत्यन्तरे पुनः पमाणं इति पाठोऽप्युपलभ्यते ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www. www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506