Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 384
________________ २४८९] ओरालियसरीरे विहि-संठाणदाराई। [४] एवं गब्भवक्कंतिए वि। [५] परिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! . कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते। तं जहा-उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य भुयपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य। [६] उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा-सम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य। [७] सम्मुच्छिमे दुविहे पण्णत्ते। तं जहा–अपजत्तसम्मुच्छिमउरपरि- १० सप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य पजत्तसम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य।। [८] एवं गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पचउक्कओ भेदो। [९] एवं भुयपरिसप्पा वि सम्मुच्छिम-गम्भवक्कंतिय-पज्जत्त-अपज्जत्ता। १४८६. [१] खहयरा दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-सम्मुच्छिमा य १५ गब्भवकंतिया य। [२] सम्मुच्छिमा दुविहा पण्णत्ता । तं जहा-पजत्ता य अपजत्ता य । [३] गन्भवतिया वि पन्जत्ता य अपज्जत्ता य । १४८७. [१] मणूसपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा-सम्मुच्छिममणूसपंचेंदियओरालिय- २० सरीरे य गब्भवऋतियमणूसपंचेंदियओरालियसरीरे य । [२] गब्भवकंतियमणूसपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते। तं जहा-पज्जत्तगगञ्भवतियमणूसपंचेंदियओरालियसरीरे य अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियओरालियसरीरे य । [सुत्ताई १४८८-१५०१. ओरालियसरीरे संठाणदारं] १४८८. ओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते। १४८९. एगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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