Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 440
________________ १७६८] कम्मपयडिबंधपरूवणं । ३८७ छविबंध य ६ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंधगा य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छविबंध य ८ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ९, एवं णव भंगी । [ सुत्ताई १७६६-६८. मोहणिजाइबंधासु जीवाईसु कम्मपय डिबंधपरूवणं ] ५ १७६६. मोहणिज्जं बंधमाणे जीवे कति कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। जीवेगिंदिया सत्तविहबंधगा वि अट्ठविहबंधगा वि । १७६७. [१] जीवे णं भंते ! आउअं कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! णियमा अट्ठ । एवं रइए जाव वेमाणिए । [२] एवं पुहतेण वि । १७६८. [१] णाम- गोय - अंतरायं बंधमाणे जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! जाओ णाणावरणिज्जं बंधमाणे बंधइ ताहिं भाणियव्वो । [२] एवं रइए वि जाव वेमाणिए । [३] एवं पुहत्तेण वि भाणियव्वं । ॥ पण्णवणाए भगवतीए चउवीसइमं कम्मबंधपदं समन्तं ॥ १. 'गा भाणियन्वा । १७६६. मोह पु२ मु• ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only १० १५ www.jainelibrary.org

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