Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 502
________________ ४४९ पत्तस्स पंतीए २४० शीर्षके २५० २६० २६४ २६७ २७१ सुद्धिपत्तयं असुद्ध पढसुद्देसे उबओगप्पा उवओगद्ध गोयामा दिया ? गो असंखज्जा अहवगे पओगिणा सीद्ध आयरिय समगं पट्ठिया ३ विसम उवाहिया म० पुर प्रत्योरेवो मु ॥ तेउलेस्साण इत्तरिय सोहणीयं पठमुद्देसे "उवओगद्धप्पा उवओगद्धा गोयमा दिया अतीया ? गो असंखेना अहवेगे प्पओगिणो सिद्ध आयरियं विसमं पट्ठिया ३ समगं उब्बहिया म. पुर मु० प्रतिष्वेको मु०,एतत्पाठानुसारिणी मलयवृत्तिः॥ तेउलेस्साणं 4 . इत्तरिय 'तुम्बी घोसाडिए अणोवमाइ उवमाइ मालावगा मणूस्से उसप्पिणि ३०८ ३१२ ३२४ 'तुंबी घोसीडिए अणोवमा इ उवमा इ आलावगा मणूसे उस्सप्पिणि अट्ठार [उववजह] संठाणपए १५०७[१] धणू अपज्जत्तग शीर्षके अठ्ठार ३३० उववजेजा संठाणए १५०२ ३३४ ३३५ ३३७ धणू अपजत्तग शीर्षके पए। पए वेउवियरीरे ३५० ३५४ २६ २९ 'वेउब्वियसरीरे पदे प्रतिष्वेवो प्रतिष्वेवो 'बंधिए बंधए अट्टविहंब अट्टविहबं° Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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