Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 501
________________ सुद्धिपत्तयं .. पत्तस्स पंतीए १४० शीर्षके ___ असुद्धं ओगाहणाइसु नरइए ओगाहणाइसु सोहणीयं ओगाहणाईहिं नेरइए ओगाहणाईहिं १४३ २५ १४४ १४६ १४८ पनवेहि य ओगाहणाइसु पनवेहि ओहिदसणपज्जवेहि य छ° मु०॥ चउट्ठाणवडिते णवरं सट्टाणे पनवेहिं [ओहिदसणपजवेहि व ओगाहणाईहिं पजवेहि य छ° सर्वास प्रतिषु ॥ ४९३] चउ(ति टाणवडिते णवरं [ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए,] सट्टाणे ति(चउ)ट्ठाणवडिए १.° ए चउहाण सर्वासु प्रतिषु ॥ २. णवरं सट्ठाणे सर्वासु प्रतिषु ।। ओगाहणाईहिं तिट्ठाणवडिए १. °ए तिहाण मु०॥ २. णवरं ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए सट्ठाणे मु०॥ ओगाहणाइसु १५१ १६३ १६९ उववज्जति १७७ १८१ १९१ १९८ २०५ २१० उववेज्जंति द्वितीया टिप्पणी निष्कासनीया प्र० मु०॥ बुझंति तेविहा अचरिम नोत्पद्यन्ते पु३॥ अहमेसाबु यामि भंते मणुस्से ! महुर' याभेद अमेव सररिपए जहा ओहिया - १.°या। आहा तिरियंग २३ प्र० रा तेहिंतो भाणियव्वा मु०॥ -बुज्झंति तिविहा अचरिमे नोपपद्यन्ते पु ३ ह.॥ अहमेसा बुयामि भंते! मणुस्से मधुर यामेदे अभव' सरीरपए जहा ओहिया १,°हा ओरालिया । आहा तिरियग २१२ २१७ २१९ २२३ २२६ २२८ १७ २४ शीर्षके १. २० २३१ २३९ शीर्षके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 499 500 501 502 503 504 505 506