Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 446
________________ ३९३ १८०२] नेरइएसु २-८ आहारहिआइदारसत्तगं। . १७९८. [१] जाइं भावओ वण्णमंताई आहारेंति ताई किं एगवण्णाई आहारेति जाव किं पंचवण्णाइं आहारेंति ? गोयमा ! ठाणमग्गणं पडुच्च एगवण्णाई पि आहारेंति जाव पंचवन्नाइं पि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच कालवण्णाई पि आहारेंति जाव सुक्किलाई पि आहोरेंति । [२] जाई वण्णओ कालवण्णाई आहारेति ताई किं एगगुणकालाई ५ आहारेंति जाव दसगुणकालाई आहारेंति संखेजगुणकालाई असंखेजगुणकालाई अणंतगुणकालाई आहारेंति ? गोयमा ! एगगुणकालाई पि आहारेंति जाव अणंतगुणकालाई पि आहारेति । एवं जाव सुकिलाइं पि। १७९९. एवं गंधओ वि रसतो वि । १८००. [१] जाइं भावओ फासमंताई ताई णो एगफासाइं आहारेंति णो १० दुफासाइं आहारेंति णो तिफासाइं आहारेंति, चउफासाइं आहारेंति जाव अट्टफासाई पि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कक्खडाई पि आहारेंति जाव लुक्खाई पि। [२] जाई फासओ कक्खडाई आहारेंति ताई किं एगगुणकक्खडाई आहारेंति जाव अणंतगुणकक्खडाइं आहारेंति ? गोयमा ! एगगुणकक्खडाई पि आहारेंति जाव अणंतगुणकक्खडाई पि आहारेंति । एवं अट्ठ वि फासा भाणियव्वा १५ जाव अणंतगुणलुक्खाई पि आहारेंति।। [३] जाइं भंते ! अणंतगुणलुक्खाइं आहारेति ताई किं पुट्ठाई आहारेंति अपुट्ठाइं आहारेंति ? गोयमा ! पुट्ठाई आहारेंति, णो अपुट्ठाई आहारेंति, जहा भासुद्देसए (सु. ८७७ [१५-२३]) जाव णियमा छदिसिं आहारेति । १८०१. ओसण्णकारणं पडुच्च वण्णओ काल-नीलाइं गंधओ दुन्भिगंधाइं २० रसतो तित्तरस-कडुयाई फासओ कक्खड-गरुय-सीय-लुक्खाइं तेसिं पोराणे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे विप्परिणामइत्ता परिपीलइत्ता परिसाडइत्ता परिविद्धंसइत्ता अण्णे अपुव्वे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे उप्पाएत्ता आयसरीरखेत्तोगाढे पोग्गले सव्वप्पणयाए आहारमाहरेंति ।। १८०२. णेरइया णं भंते ! सव्वतो आहारेंति सव्वतो परिणामेति २५ सव्वओ ऊससंति सव्वओ णीससंति अभिक्खणं आहारेंति अभिक्खणं परिणामेंति अभिक्खणं ऊससंति अभिक्खणं णीससंति आहच्च आहारेंति आहच्च परिणामेंति आहच ऊससंति आहच णीससंति ? हंता गोयमा ! णेरड्या सवतो आहारेंति एवं तं चेव जाव आहच्च णीससंति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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