Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 458
________________ ४०५ १०. १९०३] ७-१२ कसायदाराइदारछकं । १८९९. [१] अण्णाणी मइअण्णाणी सुयअण्णाणी जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। [२] विभंगणाणी पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य आहारगा, णो अणाहारगा। अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगो। दारं ८॥ [सुत्तं १९००. ९ जोगदारे आहारयाइपरूवणं] १९००. [१] सजोगीसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। [२] मणजोगी वइजोगी य जहा सम्मामिच्छद्दिट्ठी (सु. १८८९)। णवरं वइजोगो विगलिंदियाण वि। [३] कायजोगीसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। [४] अजोगी जीव-मणूस-सिद्धा अणाहारगा। दारं ९॥ [सुत्तं १९०१. १० उवओगदारे आहारयाइपरूवणं] १९०१. [१] सागाराणागारोवउत्तेसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। [२] सिद्धा अणाहारगा। दारं १० ॥ [सुत्तं १९०२. ११ वेददारे आहारयाइपरूवणं] १९०२. [१] संवेदे जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। [२] इत्थिवेद-पुरिसवेदेसु जीवादीओ तियभंगो। [३] णपुंसगवेदए जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। [४] अवेदए जहा केवलणाणी (सु. १८९८ [४])। दारं ११॥ [सुत्तं १९०३. १२ सरीरदारे आहारयाइपरूवणं] १९०३. [१] ससरीरी जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। [२] ओरालियसरीरीसु जीव-मणूसेसु तियभंगो । [३] अवसेसा आहारगा, णो अणाहारगा, जेसिं अत्थि ओरालियसरीरं । [४] वेउब्वियसरीरी आहारगसरीरी य आहारगा, णो अणाहारगा, जेसिं अत्थि । [५] तेय-कम्मगसरीरी जीवेगिंदियवजो तियभंगो। २५ १. सवेदए जी पु२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506