Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 457
________________ ४०४ पण्णवणासुत्त अट्ठावीसइमे आहारपए बीउद्देसे [सु. १८९२ - [२] पुहत्तेणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। १८९२. संजयासंजए जीवे पंचेंदियतिरिक्खजोणिए मणूसे य एते एगत्तेण वि पुहत्तेण वि आहारगा, णो अणाहारगा। १८९३. णोसंजए-णोअसंजए-णोसंजयासंजए जीवे सिद्धे य एते एगत्तेण ५ वि पुहत्तेण वि णो आहारगा, अणाहारगा। दारं ६॥ [सुत्ताई १८९४-९६. ७ कसायदारे आहारयाइपरूवणं] १८९४. [१] सकसाई णं भंते ! जीवे किं आहारए अणाहारए ? गोयमा ! सिय आहारए सिय अणाहारए। [२] एवं जाव वेमाणिए। १८९५. [१] पुहत्तेणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। [२] कोहकसाईसु जीवादिएसु एवं चेव । णवरं देवेसु छन्भंगा। [३] माणकसाईसु मायाकसाईसु य देव-णेरइएसु छब्भंगा। अवसेसाणं जीवेगिंदियवजो तियभंगो। [४] लोभकसाईसु णेरइएसु छब्भंगा। अवसेसेसु जीवेगिंदियवज्जो १५ तियभंगो। १८९६. अकसाई जहा णोसण्णी-णोअसण्णी (सु. १८८१-८२)। दारं ७॥ [सुत्ताई १८९७-९९. ८ णाणदारे आहारयाइपरूवणं] १८९७. णाणी जहा सम्मद्दिट्ठी (सु. १८८७)। १८९८. [१] आभिणिबोहियणाणि-सुतणाणिसु बेइंदिय-तेइंदियचउरिदिएसु छन्भंगा। अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगो जेसिं अत्थि । [२] ओहिणाणी पंचेंदियतिरिक्खजोणिया आहारगा, णो अणाहारगा। अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगो जेसिं अत्थि ओहिणाणं । [३] मणपज्जवणाणी जीवा मणूसा य एगत्तेण वि पुहत्तेण वि आहारगा, २५ णो अणाहारगा। [४] केवलणाणी जहा णोसण्णी-णोअसण्णी (सु. १८८१-८२)। १. जीवादीसु प्र० पु१ पु२ पु३ ॥ २. °णाणी सुयणाणी य बेई मु० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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