Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 461
________________ * ४०८ पण्णवणासुत्ते एगूणतीसइमे उवओगपए [सु. १९१७ - १९१७. पुढविक्काइयाणं भंते ! सागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णते । तं जहा-मतिअण्णाणे सुतअण्णाणे । १९१८. पुढविक्काइयाणं भंते ! अणागारोवओगे कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! एगे अचक्खुदंसणाणागारोवओगे पण्णत्ते । १९१९. एवं जाव वणप्फइकाइयाणं ।। १९२०. बेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! दुविहे उवओगे पण्णत्ते । तं जहा-सोगारे अणागारे य । १९२१. बेइंदियाणं भंते ! सागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते । तं जहा-आभिणिबोहियणाणसागारोवओगे १ सुयणाण१० सागारोवओगे २ मतिअण्णाणसागारोवओगे ३ सुतअण्णाणसागारोवओगे ४ ।। १९२२. बेइंदियाण भंते ! अणागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगे अचक्खुदंसणअणागारोवओगे। १९२३. एवं तेइंदियाण वि। १९२४. चउरिंदियाण वि एवं चेव। णवरं अणागारोवओगे दुविहे १५ पण्णत्ते। तं जहा-चक्खुदंसणअणागारोवओगे य अचक्खुदंसणअणागारोवओगे य। १९२५. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं जहाणेरइयाणं (सु. १९१२-१४)। १९२६. मणुस्साणं जहा ओहिए उवओगे भणियं (सु. १९०८-१०) तहेव भाणियव्वं । १९२७. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं (सु. १९१२२० १४)। [सुत्ताई १९२८-३५. जीवाईसु सागाराणागारोवओगपरूवणं] १९२८. जीवा णं भंते ! किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता? गोयमा ! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि। से केणटेणं भंते ! एव बुच्चति जीवा सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि ? गोयमा ! जे णं जीवा आभिणिबोहिय२५ णाण-सुतणाण-ओहिणाण-मण केवल मतिअण्णाण-सुतअण्णाण-विभंगणाणोवउत्ता ते णं जीवा सागारोवउत्ता, जे णं जीवा चक्खुदंसण-अचक्खुदंसण-ओहिदंसण १. अण्णाण सुतअ० । मु० ॥ २. सागारोवओगे अणागारोवओगे य मु०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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