Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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२०५३]
६ परियार णादारं ।
[६] तत्थ णं जे ते मणपरियारगा देवा तेसिं इच्छामणे समुपज्जइ - इच्छाम णं अच्छराहिं सद्धिं मणपरियारणं करेत्तए, तए णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकए समाणे खिप्पामेव ताओ अच्छराओ तत्थगताओ चेव समाणीओ अणुत्तराई उच्चावयाई मणाई पंहारेमाणीओ २ चिट्ठति, तए णं ते देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं मणपरियारणं करेंति, सेसं णिरवसेसं तं चैव जाव भुज्जो २ परिणमति ।
२०५३. एतेसि णं भंते! देवाणं कायपरियारगाणं जाव मणपरियारगाणं अपरियारगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४ ? गोयमा ! सव्वत्थोवा देवा अपरियारगा, मणपरियारगा संखेज्जगुणा, सद्दपरियारगा असंखेज्जगुणा, रुवपरियारगा असंखेज्जगुणा, फौसपरियारगा असंखेज्जगुणा, कायपरियारगा असंखेज्जगुणा ।
॥ पण्णवणाए भगवतीए चउतीसइमं पैवियारणापर्यं समन्तं ॥
१. संपहारे मु० ॥ २. फरिस पु२ ॥ ३ परिया जे० विना ॥
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