Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 441
________________ १० १५ २० २५. पंचवीसइमं कम्मबंधवेयपयं [ सुत्ताई १७६९-७४ णाणावरणाइबंधएस जीवाईसु कम्मपयडिवेयपरूवणं ] १७६९. [१] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ । तं जहा - णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं । [२] एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं । १७७०. [१] जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति ? गोयमा ! णियमा अट्ठ कम्मपगडीओ वेदेति । [२] एवं रइए जाव वेमाणिए । १७७१. एवं पुहत्तेण वि । १७७२. एवं वेयणिज्जवज्जं जाव अंतराइयं । १७७३. [१] जीवे णं भंते ! वेयणिज्जं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ वेएइ ? गोयमा ! सत्तविहवेयए वा अट्ठविहवेयर वा चउव्विहवेयए वा । [२] एवं मणूसे वि । सेसा रइयाई एगत्तेण वि पुहत्तेण विणियमा अ कम्मपगडीओ वेदेंति, जाव वेमाणिया । १७७४. [१] जीवा णं भंते ! वेदणिज्जं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ वेदेंति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा अट्ठविहवेदगा य चउव्विहवेदगा य १ अहवा अट्ठविहवेदगा य चउव्विहवेदगा य सत्तविहवेदगे य २ अहवा अट्ठविहवेदगा य चउव्विहवेदगा य सत्तविहवेदगा य ३ | [२] एवं मणूसा विभाणियव्वा । Jain Education International ॥ पण्णवणाए भगवतीए पंचवीसहमं कम्मबंधवेदपयं समत्तं ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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