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________________ २९४ पण्णवणासुत्ते सत्तरसमे लेस्सापए चउत्थुद्देसे [सु. १२२९ - से जहाणामए खयरसारे इ वा कैयरसौरे इ वा धमाससारे इ वा तंबे इ वा तंबकरोडए इ वा तंबच्छिवाडियाँ इ वा वाइंगणिकुँसुमए इ वा कोइलँच्छदकुसुमए इ वा1 जवासाकुसुमे इ वा कैलकुसुमे इ वा>। भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणढे समढे, काउलेस्सा णं एत्तो अणितरिया जाव अमणा५ मयरिया चेव वण्णेणं पण्णता ।। १२२९. तेउलेस्साणं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए ससरुहिरे इ वा उरब्भरुहिरे इ वा वराहरुहिरे इ वा संबररुहिरे इ वा मणुस्सरुहिरे इ वा बालिंदगोवे इ वा बालदिवागरे इ वा संझब्भरागे इ वा गुंजद्धरागे इ वा जाइहिंगुलुए इ वा पवालंकुरे इ वा लक्खारसे इ वा १० लोहियक्खमणी इ वा किमिरागकंबले इ वा गयतालुए इ वा चीणपिट्ठरासी इ वा पॉलियायकुसुमे इ वा जाँसुमणाकुसुमे इ वा किंसुर्यपुप्फरासी इ वा रत्तुप्पले इ वा रत्तासोगे इ वा रत्तकणवीरए इ वा रत्तबंधुजीवए इ वा । भवेयारूवा ? गोयमा ! णो इणढे समढे, तेउलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव वनेणं पण्णत्ता। १२३०. पम्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णता ? गोयमा ! से जहाणामए चंपे इ वा चंपयछल्ली इ वा चंपयभेदे इ वा हलिद्दा इ वा हलिद्दगुलिया इ वा हलिद्दाभेए इ वा हरियाले इ वा हरियालगुलिया इ वा हरियालभेए इ वा चिउरे इ वा चिउररागे इ वा सुवण्णसिप्पी इ वा वरकणगणिहसे इ वा वरपुरिसवसणे इ वा अल्लइकुसुमे इ वा चंपयकुसुमे इ वा कैणियारकुसुमे इ वा कुहंडियाकुसुमे इ वा सुवण्णजूहिया इ वा सुहिरण्णियाकुसुमे इ वा कोरेंटमलदामे इ वा पीयासोगे इ वा पीयकणवीरए इ वा पीयबंधुजीवए इ वा । भवेतारूवा ? १. खइर° पु२ । खदिर मु०॥२, ४-५. °सारए इ वा म०प्र० पु२ ॥ ३. कहर पुर मु०॥ ६. °याए इ मु० ॥ ७,९. °कुसुमे इ वा म० पु२॥ ८. लच्छाकु जे० ॥ १०. > एतचिह्नमध्यगतः पाठो मलयवृत्ती नव्याख्यातः ॥ ११. कलकुसुम इवा इति पाठःप्र० पु१ पु३ प्रतिषु श्रीधनविमलगणिकृतस्तबके च नास्ति। कलमुकुसुमे इ वा पु२ । “कलसकुसुमे इ वा-कलसकुसुम फूल जेहवो" इति श्रीजीवविजयगणिकृतस्तबके ॥ १२. अकंततरिया जे. ध०॥ १३. वा इंदगोवे इ वा बालि मुद्रिते एव, मुद्रितादर्श उपलभ्यमानोऽयं पाठो भ्रान्तिजनित एव, न हि कस्मिंश्चिदप्यादर्शे उपलभ्यते॥ १४. कुरुए इ पु२ ॥ १५. गइता जे. ध०॥ १६. पारियाय° पु२ । पारिजाय मु० ॥ १७. जासुमिणाकु जे० ॥ १८. °यकुसुमरासी ध०॥ १९ भवे एयारूवा इति मलयवृत्तिगतावतरणे ॥ २० °मए चंपा इ जे० ध० म० प्र०॥ २१ कण्णियार' मुद्रिते, मुद्रितमलयवृत्तौ च ॥ २२. कोडेदृमल्ल जे०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001063
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1969
Total Pages506
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size9 MB
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