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________________ २९३ १२२८] १-२. परिणाम-चण्णाहिगारा। १२२४. एवं काउलेस्सा कण्हलेस्सं णीललेस्सं तेउलेस्सं पम्हलेस्सं सुक्कलेस्सं, एवं तेउलेस्सा किण्हलेसं णीललेसं काउलेसं पम्हलेसं सुक्कलेस्सं, एवं पम्हलेस्सा कण्हलेसं णीललेसं काउलेसं तेउलेसं सुक्कलेस्सं । १२२५. से णूणं भंते ! सुक्कलेस्सा किण्ह० णील० काउ० तेउ० पम्हलेस्सं पप्प जाव भुजो २ परिणमति ? हंता गोयमा ! एवं चेव । [सुत्ताई १२२६-३२. २ वण्णाहिगारो] १२२६. कण्हलेस्सा णं भंते ! वण्णेणं केरािसया पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए जीमूए इ वा अंजणे इ वा खंजणे इ वा कज्जले इ वा गवले इ वा गवलवलए इ वा जंबूफलए इ वा अद्दारिट्ठए इ वा परपुढे इ वा भमरे इ वा भमरावली इ वा गयकलमे इ वा किण्हकेसे इ वा आगासथिग्गले इ वा किण्हासोए १० इ वा किण्हकणवीरए इ वा किण्हबंधुजीवए इ वा । भवेतारूवा ? गोयमा ! णो णटे समढे, किण्हलेस्सा णं एत्तो अणि?तरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव अंमणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता। १२२७. णीललेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामएँ भिंगे इ वा भिंगपत्ते इ वा चासे ति वा चांसपिच्छे इ वा सुए इ १५ वा सुयपिच्छे इ वा सामा इ वा वणराई इ वा उच्चतए इ वा पारेवयगीवा इ वा मोरगीवा इ वा हलधरवसणे इ वा अयसिकुसुमए इ वी बाणकुसुमए इ वा अंजणकेसियाकुसुमए इ वा णीलुप्पले इ वा नीलासोए इ वा णीलकणवीरए इ वा णीलबंधुजीवए इ वा । भवेतारूवा ? गोयमा ! णो ईणढे समढे, एत्तो जाव अमणामयरिया चेव वण्णेणं पण्णता। २० १२२८. काउलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णता ? गोयमा ! १. सुक्कलेसं पप्प जाव भुज्जो भुजो परिणमइ ? हंता गोयमा ! तं चेव । पु२ मु०॥ २. °मा ! तं चेव म०प्र० पुर ॥ ३. गवलवलए इति पदं मलयवृत्तौ न व्याख्यातम् ॥ ४. अद्दारिट्ठए इति पाठस्थाने भरिट्ठए इति पाठानुसारि मलयवृत्तिव्याख्यानम् ॥ ५. किण्हकेसरे इ वा इति पाठानुसारि मलयवृत्तिव्याख्यानम् ॥ ६. भवे एयारूवे मलयवृत्तिगतावतरणे। भवे एतारूवे मु०॥ ७. इणमढे पु२॥ ८.°ट्ठइरिया जे०॥९. अमणापतरिया इति पाठानुसारि मलयवृत्तिव्याख्यानम्। १०.°ए भिंगए इ वा मु०॥ ११. चासपिंछे जे० ध० । चासपिच्छए मु०॥ १२.सुयपिंछे जे०ध०॥ १३. उव्वत्तए जे० प्रदेशव्याख्यायां च ॥ १३, १६-१७. कुसुमे इ वा म० प्र० पु२ ॥ १५. वा वणकु मुद्रिते मुद्रितमलयवृत्तौ च, किन्तु मलयवृत्तेः ताडपत्रीयादिलिखितादर्शेषु बाणकुसुमे इत्येव पाठ उपलभ्यते ॥ १८. भवे तेयारूवा जे०॥ १९. इणमढे पु२, एवमन्यत्रापि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001063
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1969
Total Pages506
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size9 MB
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