Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 14
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र सूत्र-११९ जिस शाखा के काष्ठ की अपेक्षा, उसकी छाल अधिक पतली हो, वह छाल प्रत्येकजीव वाली है । इस प्रकार की अन्य छालें को प्रत्येकजीवी समझना । सूत्र-१२० जिस को तोड़ने पर (भंगस्थान) चक्राकार हो, तथा जिसकी गाँठ चूर्ण से सघन हो, उसे पृथ्वी के समान भेद से अनन्तजीवों वाला जानो। सूत्र-१२१ जिस की शिराएं गूढ़ हों, जो दूध वाला हो अथवा जो दूध-रहित हो तथा जिसकी सन्धि नष्ट हो, उसे अनन्त जीवों वाला जानो। सूत्र-१२२ पुष्प जलज और स्थलज हों, वृन्तबद्ध हों या नालबद्ध, संख्यात जीवों वाले, असंख्यात जीवों वाले और कोईकोई अनन्त जीवों वाले समझने चाहिए। सूत्र-१२३ जो कोई नालिकाबद्ध पुष्प हों, वे संख्यात जीव वाले हैं । थूहर के फूल अनन्त जीवों वाले हैं । इसी प्रकार के जो अन्य फूल को भी अनन्त जीवी समझो। सूत्र - १२४ पद्मकन्द, उत्पलिनीकन्द और अन्तरकन्द, इसी प्रकार झिल्ली, ये सब अनन्त जीवी हैं; किन्तु भिस और मृणाल में एक-एक जीव हैं। सूत्र - १२५ पलाण्डुकन्द, लहसुनकन्द, कन्दली नामक कन्द और कुसुम्बक ये प्रत्येकजीवाश्रित हैं । अन्य जो भी इस प्रकार की वनस्पतियाँ हैं, (उन्हें प्रत्येकजीवी समझो ।) सूत्र-१२६, १२७ पद्म, उप्पल, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, अरविन्द, कोकनद, शतपत्र और सहस्रपत्र-कमलों के- वृत्त, बाहर के पत्ते और कर्णिका, ये सब एकजीवरूप हैं । इनके भीतरी पत्ते, केसर और मिंजा भी प्रत्येक जीवी हैं। सूत्र-१२८, १२९ वेणु, नल, इक्षुवाटिक, समासेक्षु, इक्कड, रंड, करकर, सूंठी, विहुंगु, तृणों तथा पर्ण वाली वनस्पतियों के जो - अक्षि, पर्व तथा बलिमोटक हों, वे सब एकजीवात्मक हैं । इनके पत्र प्रत्येकजीवी हैं, और इनके पुष्प अनेकजीवी हैं सूत्र-१३० पुष्यफल, कालिंग, तुम्ब, त्रपुष, एलवालुस, वालुक, घोषाटक, पटोल, तिन्दूक फल इनके सब पत्ते प्रत्येक जीव से (पृथक्-पृथक) अधिष्ठित होते हैं। सूत्र-१३१ तथा वृन्त, गुद्दा और गिर, के सहित तथा केसर सहित या अकेसर मिंजा, ये, सब एक-एक जीवी हैं। सूत्र - १३२ सप्फाक, सद्यात, उव्वेहलिया, कुहण, कन्दुक्य ये सब अनन्तजीवी हैं; किन्तु कन्दुक्य वनस्पति में भजना है सूत्र-१३३ ____ योनिभूत बीज में जीव उत्पन्न होता है, वह जीव वहीं अथवा अन्य कोई जीव (भी वहाँ उत्पन्न हो सकता है) जो जीव मूल (रूप) में होता है, वह जीव प्रथम पत्र के रूप में भी (परिणत होता) है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 14

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