Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र सूत्र-१०७ जिस प्रवाल के टूटने पर उस के भंगप्रदेशमें विषमछेद दिखाई दे, वह प्रवाल प्रत्येकजीव है । इसी प्रकार के और भी प्रवाल को प्रत्येकजीव समझो। सूत्र-१०८ जिस टूटे हुए पत्ते के भंगप्रदेश में विषमछेद दिखाई दे, वह पत्ता प्रत्येकजीव है । इसी प्रकार के और भी पत्ते को प्रत्येकजीव समझो। सूत्र-१०९ जिस पुष्प के टूटने पर उसके भंगप्रदेश में विषमछेद दिखाई दे, वह पुष्प प्रत्येकजीव है । इसी प्रकार के और भी पुष्प को प्रत्येकजीवी समझो । सूत्र-११० जिस फल के टूटने पर उसके भंगप्रदेश में विषमछेद दृष्टिगोचर हो, वह फल भी प्रत्येकजीव है । ऐसे और भी फल को प्रत्येकजीवी समझो। सूत्र-१११ जिस बीज के टूटने पर उसके भंग में विषमछेद दिखाई दे, वह बीज प्रत्येकजीव है । ऐसे अन्य बीज को भी प्रत्येकजीवी समझो। सूत्र-११२ जिस मूल के काष्ठ की अपेक्षा छल्ली अधिक मोटी हो, वह छाल अनन्तजीव है। इस प्रकार की अन्य छालें को अनन्तजीवी समझो। सूत्र - ११३ जिस कन्द के काष्ठ से छाल अधिक मोटी हो वह अनन्तजीव है। इसी प्रकार की अन्य छालें को अनन्त-जीवी समझो। सूत्र-११४ जिस स्कन्ध के काष्ठ से छाल अधिक मोटी है, वह छाल अनन्तजीव है। इसी प्रकार की अन्य छालें को अनन्तजीवी समझो। सूत्र-११५ जिस शाखा के काष्ठ की अपेक्षा छाल अधिक मोटी हो, वह छाल अनन्तजीव है। इस प्रकार की अन्य छालें को अनन्तजीवी समझना। सूत्र-११६ जिस मूल के काष्ठ की अपेक्षा उसकी छाल अधिक पतली हो, वह छाल प्रत्येकजीव है । इस प्रकार की अन्य छालें को प्रत्येक जीवी समझो। सूत्र-११७ जिस कन्द के काष्ठ से उसकी छाल अधिक पतली हो, वह छाल प्रत्येकजीव है । इस प्रकार की अन्य छालें को प्रत्येक जीवी समझना । सूत्र-११८ जिस स्कन्ध के काष्ठ की अपेक्षा, उसकी छाल अधिक पतली हो, वह छाल प्रत्येकजीव है । इस प्रकार की अन्य छालें को भी प्रत्येकजीवी समझना । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 13

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 181