Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवामिगम वर्णतः कालादिना गन्धतः सुरस्यदिना, रमतस्विकाविना, स्पर्शतः शादिया संस्थानतः परिमण्डलादिना परिणतानि किमति प्रश्नस्य हन्त सन्तीति पूर्ववदेव उत्तरमिति । 'ओवासंतरस्स वि तं चेव' अवकाशान्तरस्यापि तदेव, रत्नप्रभायां तनुवातो विद्यमानस्यासंग्येय योजनसहनवाहल एस्थावकाशान्तरस्प क्षेत्रच्छेदेन छियमानस्य सन्ति न्याणि तानि वर्णतः कालादिना, गन्धतः सुरभ्यादिना, रसतास्तिक्तादिना, स्पर्शतः कशा दिना, संस्थानतः परिमण्डलादिना परिणतानीति प्रश्नस्य हन्त सन्तीति पूर्ववदेव उत्तरमिति । 'सरकरपमाए ण भते ! पुढवीए' शर्कराप्रमायाः खलु भदन्त । पृथिव्याः 'बत्तीसरनोयणसयसहरस. बाहल्लाए' द्वात्रिंशोत्तर योजनशतसहस्रबाहल्यायाः 'खेत्तच्छेएण छिन्नमाणीए' रूप में, आठ स्पर्श रूप में और परिमंडल आदि ध संस्थान रूप में परिणत होते हैं। इसी तरह ते रत्नप्रभा में तनुज्ञात के नीचे विद्यमान और असंख्यात हजार योजन की मोटाई-बाले असामान्तर के आदि पहले की तरह जान लेना चाहिये, क्षेत्रच्छेद के रूप में जय केवली की बुद्धि से विभाग परते है तो उसके द्रव्य वर्ण की अपेक्षा कालादि रूप से, गन्ध अपेक्षा की सुरभि आदि रूप से, रस की अपेक्षा तिक्तादि रूप से, स्पर्श की अपेक्षा सर्कश आदि रूप से और संस्थान की अपेक्षा परिमंडल आदि रूप से परिणत होते हैं आदि सबही कथन पूर्वोक्त जैसा जनना चाहिये 'सका पभाषण भंते ! पुढबीए' हे भदन्त | शर्करा प्रभा पृथिवी के जो 'इत्तीलुत्तर जोशण सरस्सपाहल्लरस' एक लाख बत्तीस हजार योजन की मोटाई वाली है उसका 'खेत्तच्छे एण जि. રહેલ અને અસંખ્યાત હજાર જનની પહોળાઈવાળા અવકાશાન્તર વિગેરેના ક્ષેત્રચ્છેદથી વિભાગ કરવામાં આવે વિગેરે પહેલા કા પ્રમાણે સમજી લેવું જોઈએ. અર્થાત્
ક્ષેત્રચહેદપણાથી જ્યારે કેવળની બુદ્ધિથી વિભાગ કરવામાં આવે, તે તે એનું દ્રવ્ય વર્ણની અપેક્ષાથી કાળાદિપણાથી ગંધની અપેક્ષાથી સુરભિ વિગેરે પ્રકારથી, રસની અપેક્ષાથી તીખા, કડવા, વિગેરે પ્રકારથી સ્પર્શની અપેક્ષાથી કર્કશ વિગેરે રૂપે અને સંસ્થાનની અપેક્ષાથી પરિમંડલ વિગેરે પ્રકારથી थाय छे. विजेरे मधु४ घन पडता घL प्रमाणेनुसमा 'सक्करप्पभाए णं भवे ! पुढवीए' 8 लगवन् श६२प्रमा पृथ्वीना २ 'वत्त सुत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लस' से दाम त्रीस १२ याननी पडा पाणी छे, तेना 'खेतच्छेएणं छिज्जमाणीए' क्षेत्रपाथी न्यारे विमा ४२वामा