Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 28] [उपासकदशांगसूत्र तब उसने इच्छाविधि-परिग्रह का परिमाण करते हुए स्वर्ण-मुद्राओं के विषय में इस प्रकार सीमाकरण किया निधान-निहित चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं, व्यापार-प्रयुक्त चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं तथा घर व घर के उपकरणों में प्रयुक्त चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं के अतिरिक्त मैं समस्त स्वर्ण-मुद्राओं का परित्याग करता हूं। 18. तयाणंतरं च णं चउप्पयविहिपरिमाणं करेइ, नन्नत्य चउहि वहि दस गोसाहस्सिएणं वएणं, अवसेसं सव्वं चउप्पयविहि पच्चक्खामि / फिर उसने चतुष्पद-विधि---चौपाए पशुरूप संपत्ति के संबंध में परिमाण किया दस-दस हजार के चार गोकुलों के अतिरिक्त मैं बाकी सभी चौपाए पशुओं के परिग्रह का परित्याग करता हूं। 19. तयाणंतरं च णं खेत्तवत्थुविहिपरिमाणं करेइ, नन्नत्थ पंचर्चाह हलसहि नियत्तणसइएणं हलेणं अवसेसं सव्वं खेत्तवत्थुविहिं पच्चक्खामि / फिर उसने क्षेत्र-वास्तु-विधि का परिमाण किया-सौ निवर्तन [भूमि के एक विशेष माप] के एक हल के हिसाब से पांच सौ हलों के अतिरिक्त मैं समस्त क्षेत्र--बास्तुविधि का परित्याग करता हूं। विवेचन खेत [क्षेत्र] का अर्थ खेत या खेती करने की भूमि अर्थात खुली उघाड़ी भूमि है। प्राकृत का 'वत्थु' शब्द संस्कृत में 'वस्तु' भी हो सकता है, 'वास्तु' भी / वस्तु का अर्थ चीज अर्थात् बर्तन, खाट, टेबल, कुर्सी, कपड़े आदि रोजाना काम में आनेवाले उपकरण हैं। वास्तु का अर्थ भूमि, बसने की जगह, मकान या आवास है / यहाँ 'वत्थु' का तात्पर्य गाथापति आनन्द की मकान आदि संबंधी भूमि __ अानन्द की खेती की जमीन के परिमाण के सन्दर्भ में यहाँ 'नियत्तण-सइएण' [निवर्तनशतिकेन पद का प्रयोग करते हुए सौ निवर्तनों की एक इकाई को एक हल की जमीन कहा गया है, जिसे आज की भाषा में बीघा कहा जा सकता है।। प्राचीन काल में 'निवर्तन' भूमि के एक विशेष माप के अर्थ में प्रयुक्त रहा है। बीस बांस या दो सौ हाथ लम्बी-चौड़ी [2004 200 = 4000 वर्ग हाथ] भूमि को निवर्तन कहा जाता था।' 20. तयाणंतरं च णं सगडविहिपरिमाणं करेइ, नन्नत्य पंहि सगडसएहि दिसायत्तिएहि, पहिं सगड-सएहि संवाहणिपहि, अवसेसं सव्वं सगडविहिं पच्चक्खामि / तत्पश्चात् उसने शकटविधि-गाड़ियों के परिग्रह का परिमाण किया पांच सौ गाड़ियां दिग्---यात्रिक-बाहर यात्रा में, व्यापार आदि में प्रयुक्त तथा पांच सौ 1. संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी : सर मोनियर विलियम्स, पृष्ठ 560 Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org