________________ 128] [उपासकदशांगसूत्र निक्लेवो' // सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पंचमं अज्झयणं समत्तं / / आगे की घटना चुलंनीपिता की तरह है। देह-त्याग कर चुल्लशतक सौधर्म देवलोक में अरुणसिद्ध विमान में देव के रूप में उत्पन्न हुआ। वहां उसकी आयुस्थिति चार पल्योपम की बतलाई गई है। आगे की घटना भी वैसी ही है। (भगवन् ! चुल्लशतक उस देवलोक से आयु, भव एवं स्थिति का क्षय होने पर देव-शरीर का त्याग कर कहां जायगा? कहां उत्पन्न होगा? गौतम !) वह महाविदेहक्षेत्र में सिद्ध होगा-मोक्ष प्राप्त करेगा। // निक्षेप / ॥सातवें अंग उपासकदशा का पांचवां अध्ययन समाप्त / 1. एवं खलु जम्बू! समजेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमटठे पण्णत्तेत्ति बेमि / 2. निगमन-प्रार्य सुधर्मा बोले- जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर ने उपासकदशा के पांचवें अध्ययन का यही अर्थ भाव कहा था, जो मैंने तुम्हें बतलाया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org