________________ सातवां अध्ययन : सार : संक्षेप] [139 नगर के बाहर उसकी पांच सौ कर्मशालाएं थीं, जहां अनेक वैतनिक कर्मचारी काम करते थे / प्रातः काल होते ही वे वहां आ जाते और अनेक प्रकार के छोटे-बड़े बर्तन बनाने में लग जाते / बर्तनों की बिक्री की दूसरी व्यवस्था थी। सकडालपुत्र ने अनेक ऐसे व्यक्ति वेतन पर नियुक्त कर रखे थे, जो नगर के राजमार्गों, चौराहों, मैदानों तथा सार्वजनिक स्थानों में बर्तनों की विक्री करते थे। ___सकडालपुत्र की पत्नी का नाम अग्निमित्रा था / वह गृहकार्य में सुयोग्य तथा अपने पति के सुखदुःख में सहभागिन थी। सकडालपुत्र अपने धार्मिक सिद्धान्तों के प्रति अत्यन्त निष्ठावान् था, तदनुसार धर्मोपासना में भी अपना समय लगाता था। [वह युग ही कुछ ऐसा था, जो व्यक्ति जिन विचारों में आस्था रखता, तदनुसार जीवन में साधना भी करता / अास्था केवल कहने की नहीं होती।] एक दिन की घटना है, सकडालपुत्र दोपहर के समय अपनी अशोकवाटिका में गया और वहां अपनी मान्यता के अनुसार धर्माराधना में निरत हो गया। थोड़ी ही देर बाद एक देव वहां प्रकट हुआ। सकडालपुत्र के सामने अन्तरिक्ष-स्थित देव ने उसे सम्बोधित कर कहा—कल प्रात: यहां महामाहन, अप्रतिहत ज्ञान-दर्शन के धारक, त्रैलोक्यपूजित, अर्हत्, जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी आएंगे। तुम उनकी वंदना-पर्युपासना करना और उन्हें स्थान, पाट, बाजोट आदि हेतु आमन्त्रित करना / देव यों कहकर चला गया। सकडालपुत्र ने सोचा देव ने बड़ी अच्छी सूचना की। मेरे धर्माचार्य मंखलिपुत्र गोशालक कल यहां आएंगे। वे ही तो जिन, अर्हत् और केवली हैं, इसलिए मैं अवश्य ही उनकी वन्दना एवं पर्युपासना करूगा। उनके उपयोग की वस्तुओं हेतु उन्हें आमन्त्रित करूगा। दूसरे दिन प्रातःकाल भगवान् महावीर वहां पधारे। सहस्राम्रवन उद्यान में टिके / अनेक श्रद्धालु जन उनके दर्शन हेतु गए / सकडालपुत्र भी यह सोच कर कि उसके प्राचार्य गोशालक पधारे हैं, दर्शन हेतु गया। भगवान् महावीर का धर्मोपदेश हुआ / अन्य लोगों के साथ सकडालपुत्र ने भी सुना। भगवान् जानते थे कि सकडालपुत्र सुलभबोधि है। उसे सद्धर्म की प्रेरणा देनी चाहिए। अतः उन्होंने उसे सम्बोधित कर कहा-कल दोपहर में अशोकवाटिका में देव ने तुम्हें जिसके आगमन की सूचना की थी, वहां देव का अभिप्राय गोशालक से नहीं था। सकडालपुत्र भगवान् के अपरोक्ष ज्ञान से प्रभावित हुआ और मन ही मन प्रसन्न हुआ। वह उठा, भगवान् को विधिवत् वन्दन किया और अपनी कर्मशालाओं में पधारने तथा अपेक्षित सामग्री ग्रहण करने की प्रार्थना की। भगवान् ने उसकी प्रार्थना स्वीकार को और वहां पधारे। __सकडालपुत्र भगवान् महावीर के व्यक्तित्व और उनके अतीन्द्रिय ज्ञान से प्रभावित तो था, पर उसकी सैद्धान्तिक आस्था मंखलिपुत्र गोशालक में थी, यह भगवान् जानते थे। भगवान् अनुकूल अवसर देख उसे सबोध देना चाहते थे। एक दिन की बात है, सकडालपुत्र अपनी कर्मशाला के भीतर हवा लगने हेतु रखे हुए बर्तनों को धूप में देने के लिए बाहर रखवा रहा था / भगवान् को यह अवसर अनुकूल प्रतीत हुआ। उन्होंने उससे पूछा ये बर्तन कैसे बने ? सकडालपुत्र बोला-भगवन् ! पहले मिट्टी एकत्र की, उसे भिगोया, उसमें राख तथा गोबर मिलाया, गूधा, सबको एक किया, फिर उसे चाक पर चढ़ाया और भिन्न-भिन्न प्रकार के बर्तन बनाए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org