________________ सातवां अध्ययन : सकडालपुत्र आजीविकोपासक सकडालपुत्र 180. सत्तमस्स उक्लेवो' / पोलासपुरे नामं नयरे। सहस्संबवणे उज्जाणे। जियसत्तू राया। उत्क्षेप'–उपोद्घातपूर्वक सातवें अध्ययन का प्रारम्भ यों है प्रार्य सुधर्मा ने कहा--पोलासपुर नामक नगर था। वहां सहस्राम्रवन नामक उद्यान था / जितशत्रु वहां का राजा था। 181. तत्थ णं पोलासपुरे नयरे सद्दालपुत्ते नामं कुभकारे आजीविओवासए परिवसइ / आजीविय-समयंसि लद्धछे, गहियो, पुच्छियठे, विणिच्छियठे, अभिगयठे अदिमिजपेमाणुरागरत्ते य अयमाउसो ! आजीविय-समए अट्टे, अयं परमठे, सेसे अणठे त्ति आजीविय-समएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। पोलासपुर में सकडालपुत्र नामक कुम्हार रहता था, जो ग्राजीविक-सिद्धान्त या गोशालकमत का अनुयायी था। वह लब्धार्थ-श्रवण आदि द्वारा प्राजीविकमत के यथार्थ तत्व को प्राप्त किए हुए, गृहीतार्थ-उसे ग्रहण किए हुए, पृष्टार्थ-जिज्ञासा या प्रश्न द्वारा उसे स्थित किए हुए, विनिश्चितार्थ निश्चित रूप में आत्मसात् किए हुए, अभिगतार्थ-स्वायत्त किए हुए था / वह अस्थि और मज्जा पर्यन्त अपने धर्म के प्रति प्रेम व अनुराग से भरा था। उसका यह निश्चित विश्वास था कि आजीविक मत ही अर्थ-प्रयोजनभूत है, यही परमार्थ है / इसके सिवाय अन्य अनर्थ-अप्रयोजनभूत हैं / यों आजीविक मत के अनुसार वह आत्मा को भावित करता हुआ धर्मानुरत था / विवेचन __ इस सूत्र में सकडालपुत्र के लब्धार्थ, गृहीतार्थ, पृष्टार्थ, विनिश्चितार्थ तथा अभिगतार्थ विशेषण आए हैं, जिनसे प्रकट होता है कि वह जिस मत में विश्वास करता था, उसने उसके सिद्धान्तों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया था / जिज्ञासाओं और प्रश्नों द्वारा उसने तत्त्व की गहराई तक पहुंचने का प्रयास किया था। उनके अपने विचारों के अनुसार आजीविकमत सत्य और यथार्थ था / इसीलिए वह उसके प्रति अत्यन्त आस्थावान् था, जो अस्थि-मज्जा-प्रेमानुरागरक्त विशेषण से प्रकट है। इससे यह भी अनुमित होता है कि उस समय के नागरिक अपने व्यावसायिक, लौकिक जीवन के संचालन के साथ-साथ तात्विक एवं धार्मिक दृष्टि से भी गहराई में जाते थे। 1. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवासगदसाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते सत्तमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठे पण्णते ? 2. आर्य सुधर्मा से जम्बू ने पूछा-सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने उपासकदशा के छठे अध्ययन का यदि यह अर्थ-भाव प्रतिपादित किया, तो भगवन ! उन्होंने सातवें अध्ययन का क्या अर्थ बतलाया (कृपया कहें / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org