Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 194
________________ 154] [उपासकदशांगसूत्र - आजीविकोपासक सकडालपुत्र श्रमण भगवान् महावीर से धर्म सुनकर अत्यन्त प्रसन्न एवं संतुष्ट हुआ और उसने अानन्द की तरह श्रावक-धर्म स्वीकार किया। आनन्द से केवल इतना अन्तर था, सकडालपुत्र के परिग्रह के रूप में एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं घर के वैभव-साधनसामग्री में लगी थीं। उसके एक गोकुल था, जिसमें दस हजार गायें थीं। सकडालपुत्र ने श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार किया / वंदन-नमस्कार कर वह वहां से चला, पोलासपुर नगर के बीच से गुजरता हुआ, अपने घर अपनी पत्नी अग्निमित्रा के पास आया और उससे बोला-देवानुप्रिये ! श्रमण भगवान् महावीर पधारे हैं, तुम जाओ, उनकी वंदना, पर्युपासना करो, उनसे पांच अणुव्रत तथा सात शिक्षावत रूप बारह प्रकार का श्रावक-धर्म स्वीकार करो। 205. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया सद्दालपुत्तस्स समणोवासगस्स 'तह ति एयमझें विणएण पडिसुणेइ। श्रमणोपासक सकडालपुत्र की पत्नी अग्निमित्रा ने 'पाप ठीक कहते हैं' यों कहकर विनयपूर्वक अपने पति का कथन स्वीकार किया। 206. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव, भो देवाणुप्पिया ! लहुकरण-जुत्त-जोइयं, समखुर-बालिहाण-समलिहिय-सिंगरहि, जंबूणयामय-कलाव-जोत्त-पइविसिट्टएहि, रग्रयामय-घंटसुत्त-रज्जुग-वरकंचण-खइय-नत्था-पग्गहोग्गहियरहि, नीलुप्पल-कयामेलएहि, पवर-गोण-जुवाणएहि, नाणा-मणि-कणग-धंटिया-जालपरिगयं, सुजाय-जुग-जुत्त, उज्जुग-पसत्थसुविरइय-निम्मियं, पवर-लक्खणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाण-प्पवरं उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह / तब श्रमणोपासक सकडालपुत्र ने अपने सेवकों को बुलाया और कहा-देवानुप्रियो ! तेज चलने वाले, एक जैसे खुर, पूछ तथा अनेक रंगों से चित्रित सींग वाले, गले में सोने के गहने और जोत धारण किए, गले से लटकती चाँदी की घंटियों सहित नाक में उत्तम सोने के तारों से मिश्रित पतली सी सूत की नाथ से जुड़ी रास के सहारे वाहकों द्वारा सम्हाले हुए, नीले कमलों से बने प्राभरणयुक्त मस्तक वाले, दो युवा बैलों द्वारा खींचे जाते, अनेक प्रकार की मणियों और सोने की / घाटया से युक्त, बढ़िया लकड़ी के एकदम सीध, उत्तम और सुन्दर बने हुए जुए सहित, श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त धार्मिक-धार्मिक कार्यों में उपयोग में आने वाला यानप्रवर-श्रेष्ठ रथ तैयार करो, तैयार कर शीघ्र मुझे सचना दो। बहत-स 207 तए णं ते कोडुबिय-पुरिसा जाव ( सद्दालपुत्तेणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणा हतुट्टचित्तमाणंदिया, पोइमणा, परमसोमणस्सिया, हरिसवसविसप्पमाणहियया, करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ‘एवं सामि !' ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्तजोइयं जाव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं ) पच्चप्पिणंति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276