Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ सातवां अध्ययन : सकलालपुत्र [161 गोशालक ने पुनः पूछा--देवानुप्रिय ! क्या यहां महानिर्यामक पाए थे ? सकडालपुत्र-देवानुप्रिय ! कौन महानिर्यामक ? गोशालक--श्रमण भगवान महावीर महानिर्यामक हैं / सकडालपुत्र-किस प्रकार ? गोशालक देवानुप्रिय ! संसार रूपी महासमुद्र में बहुत से जीव नश्यमान, विनश्यमान एवं विलुप्यमान हैं, डूब रहे हैं, गोते खा रहे हैं, बहते जा रहे हैं, उनको सहारा देकर धर्ममयी नौका द्वारा मोक्ष रूपी किनारे पर ले जाते हैं। इसलिए मैं उनको महानिर्यामक-कर्णधार या महान् खेवैया कहता हूं। विवेचन इस सूत्र में भगवान् महावीर की अनेक विशेषताओं को सूचित करने वाले कई विशेषण प्रयुक्त हुए हैं, उनमें 'महागोप' तथा 'महासार्थवाह' भी हैं / ये दोनों बड़े महत्त्वपूर्ण हैं / भगवान् महावीर का समय एक ऐसा युग था, जिसमें गोपालन का देश में बहुत प्रचार था। उस समय के बड़े गृहस्थ हजारों की संख्या में गायें रखते थे। जैसा पहले वर्णित हुआ है, गोधन जहां समृद्धि का द्योतक था, उपयोगिता और अधिक से अधिक लोगों को काम देने की दृष्टि से भी उसका महत्त्व था। ऐसे गो-प्रधान युग में गायों की देखभाल करने वाले का---गोप का-भी कम महत्त्व नहीं था। भगवान् ‘महागोप' के रूपक द्वारा यहां जो वणित हुए हैं, उसके पीछे समाज की गोपालनप्रधान वृत्ति का संकेत है। गायों को नियंत्रित रखने वाला गोप उन्हें उत्तम घास आदि : चरने के लोभ में भटकने नहीं देता, खोने नहीं देता, चरा कर उन्हें सायंकाल उनके बाड़े में पहुंचा देता है, उसी प्रकार भगवान् के भी ऐसे लोक-संरक्षक एवं कल्याणकारी रूप की परिकल्पना इसमें है, जो प्राणियों को संसार में भटकने से बचाकर मोक्ष रूप बाड़े में निर्विघ्न पहुंचा देते हैं / 'महासार्थवाह' शब्द भी अपने आप में बड़ा महत्वपूर्ण है। सार्थवाह उन दिनों उन व्यापारियों को कहा जाता था, जो दूर-दूर भू-मार्ग से या जल-मार्ग से लम्बी यात्राएं करते हुए व्यापार करते थे / वे यदि भूमार्ग से वैसी यात्राओं पर जाते तो अनेक गाड़े-गाड़ियां माल से भर कर ले जाते, जहां लाभ मिलता बेच देते, वहां दूसरा सस्ता माल भर लेते। यदि ये यात्राएं समुद्री मार्ग से होती तो जहाज ले जाते। यात्राएं काफी लम्बे समय की होती थीं, जहाज में बेचने के माल के साथ-साथ उपयोग की सारी चीजें भी रखी जाती, जैसे पीने का पानी, खाने की चीजें, औषधियां आदि / इन यात्राओं का संचालक सार्थवाह कहा जाता था। ऐसे सार्थवाह की खास विशेषता यह होती, जब वह ऐसी व्यापारिक यात्रा करना चाहता, सारे नगर में खुले रूप में घोषित करवाता, जो भी व्यापार हेतु इस यात्रा में चलना चाहे, अपने सामान के साथ गाड़े-गाड़ियों या जहाज में आ जाय, उसकी सब व्यवस्थाएं सार्थवाह की ओर से होंगी। आगे पैसे की कमी पड़ जाय तो सार्थवाह उसे भी पूरी करेगा। इससे थोड़े माल वाले छोटे व्यापारियों को बड़ी सुविधा होती, क्योंकि अकेले यात्रा करने के साधन उनके पास होते नहीं थे' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org