Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 228
________________ नौवां अध्ययन : नन्दिनीपिता गाथापति नन्दिनीपिता 269. नवमस्स उक्खेवो' / एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी। कोटुए चेइए / जियसत्तू राया। तत्थ णं सावत्थीए नयरोए नंदिणीपिया नाम गाहावई परिवसइ, अड्ढे / चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाण-पउत्ताओ, चत्तारि हिरण-कोडीओ वुट्टि-पउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ पवित्थर-पउत्ताओ, चत्तारि वया, दसगो-साहस्सिएणं वएणं / अस्सिणी भारिया। उत्क्षेप'-उपोद्घातपूर्वक नौवें अध्ययन का प्रारम्भ यों है जम्बू ! उस काल-वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में उस समय-जब भगवान् महावीर सदेह विद्यमान थे, श्रावस्ती नामक नगरी थी, कोष्ठक नामक चैत्य था / जितशत्रु वहाँ का राजा था / श्रावस्ती नगरी में नन्दिनीपिता नामक समृद्धिशाली गाथापति निवास करता था। उसकी चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रक्खी थीं, चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार में लगी थी तथा चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं घर की साधन-सामग्री में लगी थीं। उसके चार गोकुल थे / प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थीं। उसकी पत्नी का नाम अश्विनी था / वत: आराधना 270. सामी समोसढे / जहा आणंदो तहेब गिहिधम्म पडिवज्जइ / सामी बहिया विहरइ। भगवान् महावीर श्रावस्ती में पधारे / समवसरण हुआ / आनन्द की तरह नन्दिनीपिता ने श्रावक-धर्म स्वीकार किया / भगवान् अन्य जनपदों में विहार कर गए / 271. तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए जाव' विहरइ / नन्दिनीपिता श्रावक-धर्म स्वीकार कर श्रमणोपासक हो गया, धर्माराधनापूर्वक जीवन बिताने लगा। साधनामव जीवन : अवसान 272. तए णं तस्स नंदिणीपियस्स समणोवासयस्स बहूहि सीलब्जय-गुण जाव भावेमागस्स 1. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवासगदसाणं प्रदुमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अठे पण्णत्ते ? 2. प्रार्य सुधर्मा से जम्बू ने पूछा-सिद्धिप्राप्त भगवान् महावीर ने उपासकदशा के आठवें अध्ययन का यदि यह अर्थ--भाव प्रतिपादित किया तो भगवन ! उन्होंने नौवें अध्ययन का क्या अर्थ बतलाया ? (कृपया कहें)। 3. देखें सूत्र-संख्या 64 4. देखें सत्र संख्या 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276