Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ नौवां अध्ययन : नन्दिनीपिता] [189 चोइस संवच्छराई वइक्कताई। तहेव जेठं पुत्तं ठवेइ / धम्म-पण्णति / वीसं वासाई परियागं / नाणत्तं अरुणगवे विमाणे उववाओ महाविदेहे वासे सिज्झिहिए। निक्खेवओ // सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं नवमं अज्झयणं समत्तं // तदनन्तर श्रमणोपासक नन्दिनीपिता को अनेक प्रकार से अणुव्रत, गुणवत आदि की आराधना द्वारा प्रात्मभावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए / उसने अानन्द आदि की तरह अपने ज्येष्ठ पुत्र को पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व सौंपा। स्वयं धर्मोपासना में निरत रहने लगा। नन्दिनीपिता ने बीस वर्ष तक श्रावक-धर्म का पालन किया / आनन्द आदि से इतना अन्तर है-देह-त्याग कर वह अरुणगव विमान में उत्पन्न हुा / महाविदेह क्षेत्र में वह सिद्ध—मुक्त होगा। "निक्षेप"३ "सातवें अंग उपासकदशा का नौवां अध्ययन समाप्त / / 1. एवं खल जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं तवामस्स प्रज्झयणस्स अयमठे पण्णत्तेत्ति बेमि / 2. निगमन–प्रार्य सुधर्मा बोले-जम्बू ! सिद्धिप्राप्त भगवान् महावीर ने नौवें अध्ययन का यही अर्थ-भाव कहा था, जो मैंने तुम्हें बतलाया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org