________________ 90] [उपासकदशांगसूत्र उस पिशाच द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक कामदेव भीत, त्रस्त, उद्विग्न, क्षुभित एवं विचलित नहीं हुआ; घबराया नहीं। वह चुपचाप-शान्त भाव से धर्म-ध्यान में स्थित रहा / 97. तए णं से देवे पिसाय-रूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं, जाव (अतत्थं, अणुविरगं, अखुभियं, अचलियं, असंभंत, तुसिणीयं), धम्म-ज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चंपि तच्चं पि कामदेवं एवं वयासी हं भो! कामदेवा! समणोवासया ! अपत्थियपत्थिया! जइ णं तुम अज्ज जाव (सोलाई, वयाई, वेरमणाई, पच्चक्खाणाई, पोसहोववासाई न छड्डे सि, न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसि-कुसुम-प्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडि करेमि जहा णं तुम देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वस? अकाले चेव जीवियाओ) ववरोविज्जसि / पिशाच का रूप धारण किये हुए देव ने श्रमणोपासक कामदेव को यों निर्भय (त्रास, उद्वेग तथा क्षोभ रहित, अविचल, अनाकुल एवं शान्त) भाव से धर्म-ध्यान में निरत देखा / तब उसने दूसरी बार, तीसरी बार फिर कहा-मौत को चाहने वाले श्रमणोपासक कामदेव ! आज (यदि तुम शील, व्रत, विरमण, प्रत्याख्यान तथा पोषधोपवास को नहीं छोड़ोगे, नहीं तोड़ोगे तो नीले कमल, भैंसे के सींग तथा अलसी के फल के समान गहरी नीली तेज धार वाली इस तलवार से तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर दूगा, जिससे हे देवानुप्रिय ! तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीडित होकर असमय में ही) प्राणों से हाथ धो बैठोगे / 98. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चपि तच्चपि एवं वुत्ते समाणे, अभीए जाव (अतत्थे, अणुव्विग्गे, अक्खुभिए, अचलिए, असंभंते, तुसिणीए) धम्म-ज्झाणोवगए विहरइ / ___ श्रमणोपासक कामदेव उस देब द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर भी अभीत (अत्रस्त, अनुद्विग्न, अक्षुभित, अविचलित, अनाकुल एवं शान्त) रहा, अपने धर्मध्यान में उपगतसंलग्न रहा। 99. तए णं से देवे पिसाय-रूवे कामदेव समणोवासयं अभीयं जाव' विहरमाणं पासइ, पासित्ता आसुरत्ते 4 (रुठे कुविए चंडिक्किए) ति-वलियं भिड निडाले साहटु, कामदेवं समणोवासयं नीलुप्पल जाव' असिणा खंडाखंडि करेइ। जब पिशाच रूप धारी उस देव ने श्रमणोपासक कामदेव को निर्भय भाव से उपासना-रत देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ, उसके ललाट में त्रिबलिक तीन बल चढ़ी भृकुटि तन गई / उसने तलवार से कामदेव पर वार किया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले / 100. तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं, जाव (विउलं, कक्कसं, पगाढं, चंडं, दुक्खं) दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ, जाव (खमइ, तितिक्खइ,) अहियासेइ / 1. देखें सूत्र-संख्या 97 2. देखें सूत्र-संख्या 95 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org