________________ 108] [उपासकदशांगसूत्र उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक चुलनीपिता निर्भय भाव से धर्म-ध्यान में स्थित रहा। 129. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चंपि तच्चंपि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी हं भो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! तं चेव भणइ, सो जाव विहरइ / जब उस देव ने श्रमणोपासक चुलनीपिता को निर्भय देखा, तो उसने उससे दूसरी बार और फिर तीसरी बार वैसा ही कहा / पर, चुलनीपिता पूर्ववत् निर्भीकता के साथ धर्म-ध्यान में स्थित रहा। बड़े पुत्र की हत्या 130. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव: पासित्ता आसुरत्ते 4 चुलणीपियस्स समणोवासयस्स जेट्ठ पुत्तं गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता अग्गओ घाएइ, घाएत्ता तओ मंससोल्लए करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहांसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य.आयंचइ। देव ने चुलनीपिता को जब इस प्रकार निर्भय देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ। वह चुलनीपिता के बड़े पुत्र को उसके घर से उठा लाया और उसके सामने उसे मार डाला। मारकर उसके तीन मांस-खंड किए, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाया। उसके मांस और रक्त से चुलनीपिता के शरीर को सींचा-छींटा। 131. तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तं उज्जलं जाव अहियासेइ / चुलनीपिता ने वह तीव्र वेदना तितिक्षापूर्वक सहन की। मंझले व छोटे पुत्र की हत्या 132. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चंपि तच्चपि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी हं भो चुलणीपिया समणोवासया ! अपत्थिय-पत्थिया ! जाव न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीमि, नीणेत्ता तव अग्गओ धाएमि जहा जेट्ठ पुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ / एवं तच्चंपि कणीयसं जाव अहियासेइ / देव ने श्रमणोपासक चुलनीपिता को जब यों निर्भीक देखा तो उसने दूसरी-तीसरी बार कहा१. देखें सूत्र-संख्या 97 2. देखें सूत्र-संख्या 97 3. देखें सूत्र-संख्या 97 4. देखें सूत्र-संख्या 106 5. देखें सूत्र-संख्या 97 6. देखें सूत्र-संख्या 107 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org